लक्ष्मीदेवी का गाय और बछड़े को चोलराजा के पास विक्रा करना
तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास –
लक्ष्मीदेवी राजा को गाय और बछडा साँप कर फिर तपस्या के लिए कोल्हापुरम् चली गई। राजाने अपने पशुपाल को इस उत्तम जाति की गाय और बछडे को
सौंपकर कहा – इस गाय को अच्छी तरह पाल लो। इसका दूध रोज हमें भेजा करो। राजा की यह बात ध्यान से सुनकर पशुपालक गाय और बछडे को साथ लेकर वहाँ से निकल गया। पशुपालक रोज बाकी गायों के साथ उस गाय को भी वेंकटाचलम् पर घास चराने ले जाता था। मगर वह गाय चूकर बाकी गायों से अलग होकर सीधा, श्रीहरि बैठा हुआ खखोडर के पास आकर खखोडर के ऊपर के रंध्र में अपना क्षीर छिलक कर फिर वापसजाकर बाकी सब के साथ मिल गायों जाती। प्रतिदिन ऐसा ही हो रहा था। एकदिन भी पशुपालक गाय ने अपना दूध नहीं दिया।
इस तरह कई दिन बीत गये। मगर एक दिन भी पशुपालक ने उस गाय का दूध राजा को नहीं दिया। एकदिन महारानी पशुपालक को बुलवाकर कहा- पशुपालक तुम को हम ने उस गाय का दूध रोज देने को कहा या बल्कि तुम एक बार भी दूध नहीं लाया। क्या तुम उस दूध की खुद पी रहे हो या बेच रहे हो। रानी ने कठिन स्वर से कहा। उन बातों को सुनकर पशुपालक डर गया और काँपता हुआ जवाब दिया – रानी माँ जी, सभी गायों की तरह उस गाय को भी दुहने तो उसके थन में एक बूंद भी दूध नहीं रहता मुझे समझ में नहीं आता कि यह कैसी माया है? रानी को पशुपालक की इस बात पर विश्वास नहीं हुआ और कहा-“अरे मूर्ख, बछडेवाली गाय में दूध नहीं है क्या? तुम धोखेबाज हो। कल इसका दूध जरूर लाना चाहिए।” यों कहकर पशुपाल को डाँट कर भेज दिया। पशुपालक रानी की बात सुनकर डर गया और वहाँ से निकल आया।
खखोडर में बैठे हुए श्रीहरि को गाय अपना दूध छिलक देना।