श्रीहरि लक्ष्मी देवी को खोजते हुए भूलोक में प्रविष्ट होना–
तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास
श्रीमहालक्ष्मी वैकुण्ठ छोडकर भूलोक में पहुँच गई। जब से महालक्ष्मी वैकुण्ठ से निकल गई, तब से वैकुण्ठ में दरिद्र देवता का तांडव होने लगा। लक्ष्मी के बिना वैकुण्ठ भी कलाहीन हो गया। श्रीहरि की स्थिति भी वैसी ही थी। जब से महालक्ष्मी श्रीहरि से रूठ गई, तब से वैकुण्ठवासियों में खलबली मच गई। जहाँ लक्ष्मी नहीं होगी वहाँ अनर्थ का तांडव होता रहता है। इसी वजह
से वैकुण्ठवासी लोक श्रीमहाविष्णु के पास आए और विनंती की कि “हे महाप्रभो! श्री महालक्ष्मी के बिना वैकुण्ठ शून्य है। आप किसी तरह लक्ष्मीदेवी को वापस बुला लीजिए’ वैकुंठवासियों की विनंती सुनकर श्रीहरि बहुत दुःखित हुआ और लक्ष्मीदेवी को ढूंढने भूलोक निकला।
श्रीहरि भूलोक में पहुँचकर लक्ष्मी देवी को खोजते हैरान हो गया। कहीं ढूँढने पर भी लक्ष्मी का पता नहीं मिला। आखिर श्रीहरि पेड पौधों से पक्षिजातियों से और वनमृगों से पागल की तरह लक्ष्मी का पता पूछते 2 आहार पानी के बिना भटकते – फिरते निराश होकर तिरुमल – तिरुपति पहुँचकर तिरुमला में आदिवारहस्वामि मंदिर के पास बसा हुआ इमली पेड के नीचे साँप की खखोडर में घुसकर श्रीलक्ष्मी देवी का ध्यान करते हुए उसी में तपस्या करते बैठ गया।
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