तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास
भृगु महर्षि कैलास में शंकर की परीक्षा करके शाप देना –
भृगु महर्षि शिव – दर्शन के लिए कैलास में पहुँचा। कैलास में पहुँचने के बाद नन्दीश्वर, चंडीश्वर इत्यादि प्रथमगण शिवनाम स्मरण तथा ध्यान कर रहे थे। कैलास – पर्वत शिवनाम स्मरण से गूँज उठा था। शिवपंचाक्षरी के सिवा और कोई बात ही ना थी। यह सब देख कर भृगु के मन में यह शंका पैदा हुई कि यहाँ भी मेरे आने का स्मरण किसी को नहीं है। यह सोचते हुए भृगु शिवदेव के एकांत मंदिर में प्रवेश करने लगा। वहाँ के द्वारपालों ने भृगु को रोक दिया और कहा- हे महर्षि पार्वती – परमेश्वर एकांत में है। इस समय कोई भी अंदर नहीं जा सकता। मगर भृगु ने उनकी बात न मानी और उनको हटाकर अंदर प्रविष्ट हुआ।
पार्वती – परमेश्वर इस समय प्रणयताप में थे। अचानक भृगु का प्रवेश देखकर पार्वती देवी शरमा कर शंकट से दूर हट गई। इस घटना को देखकर शिव क्रुद्ध हुआ और कहा – हे भृगु महर्षि, धर्म को जानते हुए भी इस समय यहाँ (एकांत-मन्दिर) पहुँचना मूर्खता है। कहकर अपना त्रिशूल को उठाया। शिव का यह क्रोध देखकर पार्वती ने प्रिय वचन से शिव को शांत किया। पार्वती के शांति वचन से शिव ने अपने त्रिशूल को वापस ले लिया। यह दृश्य देखकर भृगु ने उत्तेजित होकर कठोर स्वर में कहा- हे परमेश्वर, तुम ने मेरे आने का कारण नहीं जाना। मूर्ख बनकर मेरे ऊपर त्रिशूल को उठाया। तुम को यही मेरा शाप है। – भूलोक में तुम्हारे मंन्दिर में तुम्हारी मूर्ति की जगह लिंग की ही पूजा हो। शाप देकर भृगु कैलास से वैकुण्ठ की ओर चल पडा।