तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास –
तीसरा भाग – तीर्थमहिमाएँ
कलियुग में वेंकटाचलम काफी विस्तीर्ण है। लगभग तीन सौ चौसठ पुण्यतीर्थों से विराजित है। जो कोई भक्ति पूर्वक इन क्षेत्रों में स्नान करके पूजा – पाठ करेंगे उनके पंचमहापाप दूर होते है। वे लोग भोग-भाग्य पाकर सुखी होंगे। यह विषय कई पुराणों में बताया नया है।
1. स्वामि पुष्करिणी तीर्थ महिमाः
वेंकटाचल में जो तीन सौ चौंसठ तीर्थो में स्वामि पुष्करिणी तीर्थ सुप्रसिद्ध है। श्रीमन्नारायण अपनी पत्नी के साथ इस पुष्करिणी में स्नान कर रहे थे। एक दिन चंद्रवंशी राजा नंद अपने पुत्र धर्मगुप्त को राज्य पट्टाभिषेक करके वह खुद अरण्य में जाकर तपस्या कर रहा था। कई दिन के बाद धर्मगुप्त शिकार खेलने जंगल में पहुँच गया।
शिकार खेलते खेलते थक गया। रात होने पर वह अपनी आत्मरक्षा के लिए एक पेड पर जाकर बैठ गया। उस समय एक शेर ने भालू का पीछा किया। भालू डर के मारे आकर राजा के उसी पेड पर बैठ गया। राजा भालू को
देखकर डर गया। डरे हुए राजा को देखकर भालू ने राजा को धारज देते हुए कहा – राजा, आप मत डरिए। डर के मारे हम में से कोई नीचे गिर गया तो वह शेर का आहार बन जाता है। इसलिए आप आधी रात तक सो जाइए। आधी रात के बाद मै सो जाआ। भालू के कहने पर राजा सो गया। राजा के सो जाने के बाद शेर भालू को देखकर कहा “हे भल्लूक, तुम राजा को नीचे गिराओ! मै उसको खाक वापस जाऊँगा। इससे तुम बच जाओगे।” शेर की इन कपट बातों को सुनकर भालू ने राजा को बचाने का निश्चय किया। आधी रात के बाद राजा उठ गया और भालू सो गया। भालू के सो जाये के बाद शेर ने उसी तरह राजा से कहा और यह भी कहा– “मेरे जाने के बाद तुम्हें किसी प्रकार यह भालू खा जायगा।” राजा शेर की कपट बातों में आकर सोए हुए भालू को नीचे गिराया। नीचे गिरते हुए भालू भगवान की कृपा से पेड की एक डाल को पकडकर बच गया। भालू ने राजा की इस घातुकचर्या को देखकर कहा — भयंकर भालू होने पर भी दिए गए वचन निघाने के लिए तुम्हारी रक्षा की है। मगर तुम बदले में मेरी हानि की है। इसलिए तुम पागल हो जाओं।” राजा को शाप देने के बाद भालू ने शेर को देखकर कहा “शेर! तुम पिछले जन्म में भद्र नामक कुबेर के मन्त्री थे। गौतम महामुनि के शाप से शेर हो गए हो। मै भृगु वंश का धान्यकाष्ठ नामक हूँ। तुम्हारे शाप विमोचन के लिए कामरूप से भालू होकर इस प्रकार किया।” कहकर भालू ने अपना निजरूप धारन किया। भालू अपने रूप धारण करने के बाद शेर का भी शाप विमोचन हो गया। वह भी
निजरूप धारण किया। इसके बाद अपने अपने ग्रामस्थान पहूँच गए।
धर्मगुप्त राजा शापग्रस्त होने से पागल हो गया। देश देश में घूम रहा था। शिकार से राजा के न आने पर मन्त्री व सिपाहियों ने राजा की तलाश की। आखिर वे तपस्या करते हुए राजा नंद को यह समचार बताया। राजा नंद अपने बेटे धर्मगुप्त को खोजकर उसे जैमिनि महामुनि के आश्रम को ले जाकर राजा नंद ने अपने बेटे के सब हाल जैमिनि को बताया। मुनि अपनी दिव्य दृष्टि से का हाल जानकर नंद से कहा- “राजा, तुम अपने बेटे को वेंकटाचलम ले जा कर स्वामि पुष्परिणी में स्नान कराओ। उसका शाप विमोचन हो जायगा।” जैमिनि महामुनि के कहने पर राजा नंद ने अपने बेटे धर्मगुप्त को वेंकटाचलम जाकर स्वामि पुष्करिणी में स्नान कराया। पुष्करिणी में स्नान करते के बाद धर्मगुप्त का शाप विमोचन हुआ और यथापूर्व ज्ञान आ गया। राजा नंद कई अग्रहार और काफी धन श्रीस्वामी को अर्पित करके धन्य हो गया। इसलिए स्वामि- पुष्करिणी में स्नान करनेवालों का सर्वपाप दूर होगा। वे सज्जन होंगे।
आगे के लेख में जानें इसके आगे की कथा
15 . प्राचीन मुख्य तीर्थः भाग 19 में –
धन्यवाद।