तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास –
श्री तिरुपति वेंकटेश्वर स्वामी से बसाये हुए
पहाडों के नाम सात प्रकार है।
1. शेषाचलम – जो आदिशेष के रूप में है।
2. वेदाचलम – जिसमें वेदगणों का निवास है।
3. गरुडाचलम – जिसे गरुड लाया।
4. वृषभाद्रि निलय – जिसमें वृषभासुर ने मोक्ष पाया था।
5. अंजनाद्रि – जहां अंजनी देवी ने तपस्या करके हनुमानजी को जन्म दिया।
6. आनन्दगिरि – जहाँ वायुदेव और आदिशेष दानों ने अपनी अपनी शक्ति प्रकट की है।
7. वेंकटाचलम – जहाँ पापों का परिहार होता है।
इस प्रकार सात पहाड सात नामों से प्रसिद्ध हुए है।
दूसरा भाग – माहात्म्य
1. हाथीराम बावाजी की कथाः
बाबाजी नामक एक बडा भक्त उत्तर हिन्दुस्तान से तिरुमला में आकर वहीं एक आश्रम बनाकर रहता था। बावाजी प्रतिदिन तीन भर स्वामि पुष्करिणी में स्नान करते श्री वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन करते। बाद आश्रम
पहुँचकर वेंकटेश्वर स्वामी को भक्ति श्रद्धा से ध्यान करके पूजा कर रहे थे। इस प्रकार प्रतिदिन आनन्द से पूजापाठ करके श्रीनिवास का गीता गाकर अपने आश्रम के पासे खेलता रहता था। पासे में श्रीनिवास की तरफ और अपनी तरफ दोनों तरफ खुद वही खेलता रहता था। आश्रम में इसी प्रकार होता रहा। लोग इसे देखकर बावाजी को झूठा भक्त समझते थे। लेकिन बावाजी किसी पर ध्यान न देता था, अपना काम एकाग्र होकर करता रहा। एकदिन आश्रम के बाहर अचानक एक विचित्र घटना हुई। आश्रम के बाहर सुगन्धित हवा बह रही थी। वह प्रदेश भी तेजोमय कांति से विराजित था। बावाजी अचानक इस परिणाम को देखकर चकित हुआ। उसे उसी कांति में एक दिव्य स्वरूप का साक्षात्कार हुआ। बावाजी ने उस सुन्दर मूर्ति को देखकर तन्मय हो गया और कहा – “हे गोविन्द, नारायण, हरे वेंकटेश, हरे
श्रीनिवास!!” कहकर चरणों पर गिर पडा। श्रीनिवास अपन चरणों पर गिरे हुए बावाजी को देखकर उस अपने चरणों से उठाकर कहा– “बावाजी, आइए हम दोनों पासा खेलें।” श्रीनिवास की यह बात सुनकर बावाजी बहुत खुश हो गया और श्रीनिवास को आश्रम के अंदर ले गया। वहां हरिण के चमडे पर बिठाकर उनकी दिव्य मंगल रूप को देखते देखते तल्लीन होकर अपने आप को खो बैठा। श्रीनिवास इसे जानकर बावाजी से पूछा- “बावाजी, पासा खेलने नहीं आओगा?” श्रीनिवास की बात सुनकर बावाजी होश में आकर श्रीनिवास के साथ खेलने तैयार हुआ श्रीनिवास भक्त बावाजी को देखकर खुश हुआ। आखिर श्रीनिवास बावाजी से हार गया। बावाजी के जीतने पर श्रीनिवास ने कहा- “भक्त, तुम जीत गए हो। जो चाहो माँगो वरदान देने को तैयार हूँ।” बावाजी श्रीनिवास की बात सुनकर प्रार्थना की “हे परंधामा, श्रीनिवास मुझे कुछ नहीं चाहिए। मै केवल आप के विश्वरूप देखना चाहता हूँ। इसे मुझे प्रदान करो।” बावाजी की प्रार्थना मानकर श्रीनिवास अपने विश्वरूप को दिखाया। बावाजी ने श्रीनिवास के विश्वरूप दर्शन पाकर आनन्द से भक्तिपूर्वक स्तोत्र किया। श्रीनिवास बावाजी से कहा— “हाथीराम, जो कोई मुझे प्रतिफल की इच्छा के बिना पूजा करेंगे, वे लोग मेरे प्रीतिपात्र होंगे। इतना कहकर श्रीनिवास
आँखों से ओझल हो गया।
श्रीनिवास प्रतिदिन बावाजी के यहाँ आकर ताश खेल रहे थे। इस प्रकार कई दिन बीत जाने के बाद एकदिन श्रीनिवास बावाजी से ताश खेलते खेलते कहा– “हाथीराम, बाहर तुम्हें कोई बुला रहे है जाकर देखो।” बावाजी ने खेल छोडकर बाहर आकर देखा तो कोई नहीं था, चारों ओर तलाश की, फिर भी कोई नहीं था। बावाजी ने फिरकर कुटीर के अंदर प्रवेश किया। ताश
खेलने की जगह बालाजी नहीं था। बालाजी के लिए आश्रम के चारों ओर तलाश की, मगर कहीं श्रीनिवास का पता नहीं। बावाजी तलाश करके पासे के पास पहुँचा। देखा तो वहाँ श्रीनिवास का कण्ठहार पडा हुआ था। बावाजी हार को देखकर स्वामीजी भुलकर छोढ गए होंगे। वापस आते ही उसे सौंप देने की इच्छा से रात भर श्रीनिवास की राह देखता रहा। प्रातः काल तक देखकर
बवाजी हार को लेकर श्रीनिवास को सौंप देने के लिए मन्दिर की ओर दौडा। मन्दिर में श्रीनिवास के गले में कण्ठहार गायब हुआ देखकर आलय के पुजारी घबराहट से आलय के अधिकारियों से यह विचार बता दिया। पुजारी और अधिकारियों ने चारों ओर तलाश कर देखा। मगर हार नहीं मिला। इतने में बावाजी हार को लेकर मन्दिर में पहुँचा। बावाजी के हाथ में हार को देखकर
पुजारी बावाजी को चोर समझक उसे गालियाँ देते हुए खूब मारा। उनमें एक अधिकारी मार को रोककर बावाजी से पूछा- बैरागी हो तुम ने चोरी क्यों की?’
बावाजी ने अपने आश्रम में रोज होता हुआ सारा हाल अधिकारियों को बताया। लेकिन किसीने भी विश्वास नहीं किया और कहा – ‘कहाँ भगवान और कहाँ बैरागी? भगवान आकर इससे ताश खेलना असंभव है। यह बैरागी चोर है।’ इस , प्रकार निर्णय करके बावाजी को श्रीकृष्णदेवराय के आस्थान में चोरी की अभियोग
लगाकर पेश किया। पुजारियों का कथन सुनकर कृष्णदेवराय ने मन में सोचा – ‘सच्चाई को न जानकर किसी भक्त को दण्ड नहीं देना चाहिए।’ यह सोचकर
कहा- “बावाजी, हम तुम्हारी परीक्षा करेंगे। अगर उस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाओगे तो तुम को छोड देंगे, नहीं तो कठिन दण्ड देंगे। यह कहकर देवराय बावाजी को एक पाताल – गृह में ले गया। उस गृह-भर ईख भर दिया और उसे बावाजी को दिखाकर देवराय ने कहा तुम सच्चे भक्त हो तो सुबह के अंदर इन सब ईख को खा जाना।” बाद बावाजी को गृह के अंदर रखकर बाहर से ताला लगाकर चारों और सिपाहियों का पहरा रखा। बावाजी ने यह सब देखकर मन में बालाजी से प्रार्थना की और वहीं सो गया। भक्त परायण बालाजी बावाजी की रक्षा करने के लिए हाथी के रूप में आकर सुबह के अंदर ईख को खा लिया।
सुबह होते ही हाथी गंभीर स्वर में गरजकर अपनी सूंड से बावाजी को उठाया और आशीर्वाद दिया। हाथी का गरजन सुनकर सिपाही अचरज से अपने अधिकारियों को बताने के लिए दौडे। हाथी बावाजी को आशीर्वाद
देकर वहाँ से निकल कर पाताल – गृह के दरवाजे को अपने सिर से धक्का देकर दरवाजा गिराकर दौड निकला। राजा के अधिकारी आश्चर्य से यह सब देखने
लगे। हाथी वहाँ से दौडते दौडते गायब हो गया। कहीं ढूँढने पर भी न मिला। भक्त की रक्षा के लिए बालाजी हाथी के रूप में आकर सारा ईखा खा गया। अपने भक्त बावाजी की रक्षा की। ‘बावाजी परम भक्त है’ कहकर सब लोग सराहने लगे। बावाजी को चोर कहकर मारनेवाले लोग बावाजी के पाँव पर गिरकर उससे क्षमा माँगी। लेकिन बावाजी ने हाथी की तरफ देखकर हे श्रीनिवास
मेरी रक्षा के लिए हाथी बनकर सारा ईख खा गए। इस प्रकार ध्यान करके बावाजी हाथीराम हाथीराम कहकर पुकारते हुए मन्दिर की ओर दौंड निकला।
श्रीकृष्णदेवराय भक्त बावाजी को देखकर प्रार्थना की कि “हे स्वामी, आप इस मन्दिर में पुजारी बनकर रहिए।” राय की बात मानकर बावाजी बालाजी के आलय में पुजारी होकर श्री स्वामीजी के पूजा – पाठ उत्सव आदि अत्यन्त वैभव से निभाकर थोडे समय के बाद बावाजी श्री बालाजी में लीन हो गया। बावाजी के यादगार में मन्दिर के दक्षिण भाग में उनके नाम से एक मठ बनवाया। बालाजी के दर्शन के लिए जो यात्री लोग आ रहे है वे सब बावाजी के भी दर्शन कर रहे है। हाथीराम के मृत-देह को पापनाशन जाने की राह में समाधि बना
दिया। आज भी यात्री बावाजी के समाधि के दर्शन करके पूजा कर रहे है।
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