By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept

MAHI SINGH

MAHI SINGH-DHARMA GYAN MOTIVATION GROUP

  • Home
  • Give DonationNew
  • My Shop
  • धर्म ज्ञान
  • मंत्र ज्ञान
  • व्रत कथा
  • अध्यात्म
    • अध्यात्म
    • आरती
    • चालीसा
  • ज्योतिष
  • MAHI SINGH
  • हेल्थ टीप्स
  • YOGA/योगा
  • मोटिवेशन
    • मोटिवेशन
    • सुविचार
  • हिन्दी साहित्य
    • HINDI KAVITA/हिंदी कविता
    • HINDI STORY/ हिंदी कहानियाँ
  • गैलरी
    • फोटो
    • विडियो
    • वेब स्टोरी
  • Bookmarks
Reading: तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास ( भाग 15 )
Share
Sign In
Notification Show More
Font ResizerAa

MAHI SINGH

MAHI SINGH-DHARMA GYAN MOTIVATION GROUP

Font ResizerAa
  • Home Default
  • Give Donation
  • My Shop
  • धर्म ज्ञान
  • मंत्र ज्ञान
  • अध्यात्म
  • ज्योतिष
  • MAHI SINGH
  • हेल्थ टीप्स
  • YOGA/योगा
  • मोटिवेशन
  • सुविचार
  • व्रत कथा
  • आरती
  • चालीसा
  • HINDI KAVITA/हिंदी कविता
  • HINDI STORY/ हिंदी कहानियाँ
  • फोटो
  • विडियो
  • वेब स्टोरी
  • My Bookmarks
  • Home
    • Home
    • Give Donation
    • My Shop
  • Categories
    • Home
    • अध्यात्म
    • MAHI SINGH
    • ज्योतिष
    • हेल्थ टीप्स
    • व्रत कथा
    • धर्म ज्ञान
    • मंत्र ज्ञान
    • मोटिवेशन
    • सुविचार
    • YOGA/योगा
    • फोटो
    • आरती
    • विडियो
    • चालीसा
    • HINDI KAVITA/हिंदी कविता
    • HINDI STORY/ हिंदी कहानियाँ
    • वेब स्टोरी
  • Bookmarks
    • My Bookmarks
    • Sitemap
Have an existing account? Sign In
Follow US
  • Give Donation
  • My Shop
  • Blog
  • ABOUT US
  • Contact US
  • Disclaimer
  • DMCA Policy
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
© Hitechgyan.net
MAHI SINGH > Blog > DHARM-GYAN > तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास ( भाग 15 )
DHARM-GYANADHYATMAअध्यात्मधर्म ज्ञान

तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास ( भाग 15 )

MAHI SINGH
Last updated: December 1, 2023 8:08 pm
By MAHI SINGH
Share
15 Min Read
तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास ( भाग 15 )
SHARE
पिछले लेख में अपने जाना आकाशराजा श्रीनिवास को पत्र लिखते हैं। – तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास
अब आगे –
 
श्री श्री शेषाचल निवासी श्रीनिवास को, आकाशराजा लिखाकर
प्रस्तुत किया शुभ लेख, विशेषताएँ—
आर्य! आप के बारे मे बुजुगों और महर्षियों से सुनकर आनन्द हुआ है। मैं अपनी प्रिय पुत्रिका पद्मावती को आप के साथ विवाह करने का निश्चय करके वैशाख शुद्ध 10 दशी शुक्रवार के शुभलग्न मूहूर्त पर कल्याण करने का निर्णय हुआ है। इसलिए आप अपने बन्धुमित्र परिवार के साथ मेरे यहाँ पधार कर मुझसे कन्यादान स्वीकार कीजिए और हमें चरितार्थ कीजिए।
आपका
नारायणपूर निवासी
आकाश राजा
शुकमुनि शुभ-लेख को लाकर श्रीनिवास के दर्शन करना और देना-
गुरुदेव बृहस्पति से लिखी गयी शुभ-लेखा को आकाशराजा ने शुकमहर्षि को देकर कहा— “मुनिवर, आप हमें पूजनीय हैं। आप ही इस शुभ – लेख श्रीनिवास को पहुँचा कर इसका जवाब ले आइए।” यह प्रार्थना
सुनकर शुकमहर्षि ने संतोष से स्वीकार किया और शेषाचल में श्रीनिवास के दर्शन करने निकल आया। शुकमहर्षि ने यात्रा करके शेषाचल ने श्रीनिवास के दर्शन किए। श्रीनिवास ने शुक मुनि का आदर – सत्कार किया। बकुलादेवी ने शुकमुनि को अल्पाहार देकर संतुष्ट किया। शुक महामुनि अतिथि – सत्कार स्वीकार करके शुभ-लेख श्रीनिवास को अर्पित किया। श्रीनिवास ने शुभ-लेख को स्वीकार किया और पढ़ कर खुश हुआ।
श्रीनिवास आकाशराजा को जवाब देना-
 
श्रीनिवास ने आकाशराजा की शुभ-लेख को स्वीकार करके इस प्रकार जवाब दिया-
श्री श्री राजाधिराज राजशेखर पूज्य आकाशराजा के दिव्य सम्मुख में शेषाचल निवासी श्रीनिवास विनयपूर्वक प्रणाम करके लिखा हुआ पत्र । “महाराज, आप ने लिखाकर भेजा गया शुभ-लेख देखकर बहुत खुश हूँ। आपके निर्णयानुसार शुभ-लग्नपर हम अपने परिवार के साथ आ कर आप से कन्यादान स्वीकार करेंगे।
आप का
शेषाचलनिवासी
श्रीनिवास
इस प्रकार जवाब लिखाकर श्रीनिवास ने शुक महर्षि को दिया। शुकमहामुनि श्रीनिवास से बिदा लेकर शेषाचल से नारायणपुरम पहुँचकर आकाशराजाको श्रीनिवास का जवाब दे दिया। श्रीनिवास का जवाब पढकर राजा खुश
हुआ। राजा ने शुकमहर्षि का सम्मान किया । सम्मान पाकर शुकमहामुनि अपने आश्रम चले गए।
श्रीमन्नारायण वैकुंठ को छोडकर भूलोक आने के बाद पहली बार नारद महर्षि श्रीनिवास को देखने आया। श्रीनिवास ने नारदमुनि को प्रणाम करके उचित आसन पर बिठाया। नारद मुनि ने श्रीनिवास को देखकर कहा– “हे परंधाम, आर्तजनरक्षक, त्रेतायुग में वेदवती को दिए वचन को पूरा करने का समय आसन्न हो गया। तुम्हारे इस कल्याण को देखने का अवकाश पाकर मै भाग्यवान हूँ, धन्य हूँ।”
श्रीनिवास निराशा में बैठा था और चिंताग्रस्त होकर विचार में डूब
गया था। विवाह के समय श्रीनिवास की यह हालत देखकर नारद महर्षि अचरज से पूछा— “हे स्वामी, इस खुशी के समय आप को विचार क्यों है? नारद की बात सुनकर श्रीनिवास ने हँसकर कहा— “नारद, जब से लक्ष्मी देवी मुझसे रूठकर अलग हो गई तब से मै धनहीन हो गया हूँ। अब मेरे पास एक कौडी भी नहीं अब यह विवाह कैसे होगा?” इस प्रकार श्रीनिवास ने अपनी असमर्थता को बताया। अवकाश पाकर नारद मुनि ने श्रीनिवास को सलाह दी— हे श्रीनिवास आप चिंता मत कीजिए। इसका प्रबन्ध हो जाएगा। आप कुबेर के पास शादी के लिए जितना धन चाहिए, उतना धन कर्ज क्यों नहीं ले सकते?
 
श्रीनिवास का कुबेर से कर्ज लेना-
नारद की सलाह सुनकर श्रीनिवास – इसके सिवा कोई अन्य मार्ग न होने पर-कुबेर से कर्ज लेने का निश्चय करके गरुडवाहन को बुलाकर उससे कुबेर को अपने पास बुलवाया। नारद मुनि कुबेर को देखकर बोले – कुबेर, इस
वैशाख शुद्ध 10 दशमी को श्रीनिवास का विवाह होने वाला है। यह विषय तुम को भी मालूम है। लेकिन श्रीनिवास के पास एक कौडी भी नहीं है। इसलिए तुम
धन देकर सहायता करो। इससे तुम्हारा यश भी बढ जायगा” नारद की बात सुनकर कुबेर आनन्दित हुआ। श्रीनिवास को चौसठ करोड, तीन हजार, तीन सौ मोहरें (धन) कर्ज देकर पत्र लिखवा लिया। उस पत्र में ब्रह्मा, महेश्वर, अश्वत्थवृक्ष गवाही निशान किया।
श्रीनिवास ने कुबेर से कहा— “कुबेर, तुम्हारे धन का व्याज कलियुग पर्यंत देता रहूँगा। कलियुग के अंत में पूरा व्याज और पूरा असल धन चुकाऊँगा।” श्रीनिवास की यह बात सुनकर नारद और कुबेर संतुष्ट होकर चले गए।
 
श्रीनिवास का विवाह प्रयत्न-
 
कुबेर से धन पाने के बाद श्रीनिवास अपने विवाह प्रयत्न में निमग्न हुआ। सहायता के लिए अपने भाई गोविन्दराज स्वामी की बुलाकर कुबेर से लिया हुआ सब धन उसके हाथ में देकर कहा – “भाई!, तुम इस धन लेकर विवाह का प्रबन्ध करो। विश्वकर्मा को योग्य वसति-गृह बनवाओ।” श्रीनिवास की बात मानकर गोविन्दराज स्वामी ने श्रीनिवास का धन लेकर विश्वकर्मा को बुलाया और उससे विवाह मण्डप, वसतिगृह आदि की बसवाया।
 
विश्वकर्मा ने अपनी कला चातुर्य से विवाह स्थल को भूलोक में ही वैकुंठ जैसे शोभित करा दिया।
 
गोविन्दराज स्वामी के हाथ में सुवर्ण-रेखा थी। वह एक-भाग धन खर्च करता तो चार भाग धन इकट्टा होता। यह विषय श्रीनिवास को पहले ही मालूम था। इसीलिए उसको यह काम सौंप दिया। इस के बाद श्रीनिवास ने
बकुलामाता को बुलाकर पूछा “माता, बताओ शुभलेख किस किस को भेजना चाहिए।” बकुलामाता ने कहा – “बेटा, तुम हो देवदेव, इस विश्व में सब लोग तुम्हारे है। इसलिए इन चौदहों भुवनों को शुभ-लेख भेजना तुम्हारा
कर्तव्य है।” बकुला माता के कहने पर श्रीनिवास गरुत्मान को बुलाकर, उसके द्वारा चौदहों भुवनों में सब को शुभ-लेख दिलवाया और सब को विवाह की आह्वान – पत्रिका दी। श्रीनिवास के आह्वान पाकर ब्रह्मा- सरस्वती, शिव- पार्वती, इन्द्र-शचीदेवी, नारद, बृहस्पति, अष्टदिक्पालक, अत्रि महामुनि, भरद्वाज, गौतम, किन्नर, किंपुरुष, यक्ष, सिद्ध, तारा-गण, ध्रुव, प्रह्लाद, हनुमान
इत्यादि चिरंजीव, रंभा, ऊर्वशी, मेनका, तिलोत्तमा, वंदिमागध, सावित्री अरुंधती, अनसूया इत्यादि पतिव्रताएँ, भूसुर, भक्तवृन्द, तपोधन, देवयानी, वल्ली – सुब्रह्मण्य स्वामी, विनायक, संगीत मूलविराट तरणि, तदरणी, तदितर लोग शेषाचल पहुँच गए। शोषाचल कोलाहल से शोभायमान हो गया।
अग्निदेव आए हुए अतिथियों को पंचभक्ष्य परमान्न भोजन और आहारों से सतृप्त करके उनको कस्तूरी चंदनादि ताँबूल देने में निमग्न हो गया। वायुदेव से परिमल सुगन्ध हवा बहने लगी। सुमति, अनसूया, पार्वति, सावित्रि सरस्वति ये पतिव्रताएँ श्रीनिवास को मंगलस्नान कराकर कस्तूरी तिलक से सजाकर पीताम्बर इत्यादि वस्त्र पहनवाकर सिर में वज्र, वैडूर्य, नवरत्यजटित किरीट धारण करके गरुडवाहन पर बिठाकर नारायणपुरम को रवाना हुए। गणपति, शंकर, ब्रह्मदेव इत्यादि देवता अपने अपने वाहनों पर आसीन हुए। पंडितों ने वेदमन्त्र पठन करते हुए चले। मंगल वाद्यों से भरपूर समारोह शेषाचल से नारायणपुरम के नजदीक शुक महामुनि के आश्रम को पहुँच गए। शुक महामुनि
अपने आश्रम को आए हुए अतिथियों को देखकर संतुष्ट हो गया और श्रीनिवास के पादपद्यों की पूजा करके— “हे श्रीनिवास, परंधामा, तुम मेरे आतिथ्य को स्वीकार करके मुझे पावन करो।” श्रीनिवास ने शुक महर्षि की बात सुनकर -“मुनीश्वर, मै अकेला नहीं हूँ। मेरे साथ ये सब अतिथि भी है। मैं अकेले अतिथि – सत्कार कैसे पा सकता हूँ?” श्रीनिवास की यह बात सुनकर शुक महर्षि ने कहा— “हे श्रीनिवास तुम्हारी करुणा दृष्टि से इन सब का भी आतिथ हो सकता है।” भक्त की इच्छा जानकर श्रीनिवास अपने संकल्प से शुकमुनि के आश्रम को पंचभक्ष्य, पकवान, फल इत्यादियों से भर दिया।
शुकमहामुनि ने श्रीनिवास की इस लीला को देखकर खुश होकर अतिथियों, को पंचभक्ष्य परमात्रों मे सत्कार किया। शुकमहामुनि के आतिथ्य से सब लोग संतुष्ट हुए। श्रीनिवास शुकमहामुनि को देखकर “मुनिवर्य, अब तुम्हारी इच्छा तो पूरी हो गई न! अब हमें जाने की आज्ञा दो।” शुक महामुनि ने श्रीनिवास को प्रणाम करते हुए कहा- “हे श्रीनिवास, तुम तो आपद्वान्धव हो, दीन रक्षक हो, तुम्हारे करुणा कटाक्ष से मै चरितार्थ हूँ।” इस तरह कहते सुनकर श्रीनिवास शुक महामुनि से बिदा लेकर वहाँ से चले।
आकाशराजा श्रीनिवास का स्वागत करना-
आकाशराजा नारायणपुरम को हरी हरी बन्दनवारों से खूब सजा कर सभी ओर बत्तियाँ जलाकर नगर को प्रकाशमान किया। सब जगह मंगलवार ध्वनित हो रहा था। इधर अंतःपुर में पद्मावती को मंगलस्नान कराकर पीताम्बर वस्त्र पहना दिया। वज्र, वैडूर्य, नवरत्न जटित गहनों से सजा दिया। श्रीनिवास ने अपने बारात लेकर नारायणपुरम में प्रवेश किया। आकाशराजा ने श्रीनिवास के आगमन देखकर मंगल वाद्यों के साथ श्रीनिवास के बारात का स्वागत किया और श्रीनिवास को गजराज पर बैठाकर नगर के गलियों में घुमाकर बारात के लिए सजाए गए मन्दिर प्रवेश में प्रवेश कराया। बारात के साथ आए हुए मेहमानों का आदर सत्कार किया उनके रहने का प्रबन्ध किया। भोजन के बाद उन सब को चंदन तांबूल इत्यादि देकर सत्कार किया। भोजन के बाद सब लोग विश्रांति के लिए अपने अपने मंदिरों में चले गए। आकाश राजा के परिवार के लोग लग्न के प्रबन्ध में लीन हो गए।
पद्मावती- श्रीनिवास का कल्याण महोत्सव-
 
प्रातःकाल मुहूर्त का समय आसन्न हुआ। वसिष्ठ महामुनि ने आकाश राजा और धरणी देवी को बुलाकर श्रीनिवास की पाद-पूजा करने की अनुमति दी। अनुमति पाकर आकाशराजा और धरणीदेवी दोनों ने क्षीर, पन्नीर, चन्दन
आदि को लेकर धूप-दीप से श्रीनिवास की पाद – पूजा की। उसके मोतियों से सजा हुआ आसन पर बिठाकर वेद मन्त्र पठन से, मंगल वाद्यों से श्रीनिवास को कल्याण – मंडप तक लेकर आया और नवरत्नजटित कल्याण
वेदिका में बिठाया। बृहस्पति, ब्रह्मदेव वेद मन्त्रों का पठन करने लगे। वसिष्ठ महामुनि की आज्ञानुसार धरणी देवी ने पद्मावती को सजाकर कल्याण वेदिका पर बिठाया। आकाशराजा पद्मावती के हाथ को अपने हाथ में लिया और धरणीदेवी सुवर्ण पात्र में गंगाजल ले आयी और उस हाथों पर डालती हुई कन्यादान किया।
 
वसिष्ठमहामुनि श्रीनिवास और पद्मावती के हाथों में कंकण धारण किया और मंगलगान कपूर आरती देते हुए सब के समक्ष में श्रीनिवास ने पद्मावती के गले में मंगलसूत्र बाँध दिया। ब्रह्मदेव, शंकर आदि देवता गण ने
पद्मावती श्रीनिवास के सिर पर अक्षत डालकर आशीर्वाद दिया। सरस्वती देवी दोनों ने पार्वती देवी श्रीनिवास और पद्मावती को मंगल आरती उतारी। गन्धर्व समूह ने आकाश से फूलों को बरसाया। इस प्रकार श्रीनिवास और पद्मावती का कल्याण वैभव से हुआ। बकुलादेवी ने श्रीनिवास कल्याण को देखकर आनन्दित हुई और श्रीनिवास और पद्मावती को आशीर्वाद दिया।
 
आकाशराजा का पद्मावती को श्रीनवास के हाथ में सौंपना-
पद्मावती श्रीनिवास के कल्याण के बाद आकाशराजा अपने दामाद श्रीनिवास को भेंट के रूप में वज्र, वैडूर्य, मरकत माणिक्यों से बनाया गया रत्न किरीट और, दो करोड, चौदह हजार, सोने की मुहरें मणियों के कण्ठहार,
माणिक्य मकर कुण्डल, सिंह ललाट, कङ्कण, हीरे के गहने, अपरंजि की पाद रक्षाएँ , भोजन करने के लिए सोने की थाली, रत्न की चरे, एक हजार हाथी, दस हजार घोडे इत्यादियों के साथ दास दासियों को भी सौंप दिया।
आकाशराजा अपनी बेटी पद्मावती के लिए रेशमी वस्त्र सोने के माणिक्यमय गहने, हल्दी, कुंकुम, दो हजार ग्रामों को भेंट के रूप में लिखाकर दिया। विवाह में आए हुए अतिथियों को गौरव के साथ सत्कार किया। पंडित
पुरोहितों को काफी बहुमान देकर संतृप्त किया। इस प्रकार पाँच दिन तक अत्यन्त वैभव के साथ श्रिनिवास पद्मावती का विवाह हुआ। आकाशराजा (धरणीदेवी)
पद्यावती को श्रीनिवास के हाथ में रखकर कहा- “श्रीनिवास! मैं जानता हूँ, तुम श्रीहरि हो। मेरे पूर्वजन्म पुण्य की वजह से तुम मेरे दामाद हुए, तुम हो सकल
धर्मसंरक्षक। फिर भी मेरे विनंती है कि पद्मावती नादान है। उसने तुम को न पहचान कर भूल से अपनी सहेलियों से पत्थरों से मारा दिया। तुम उसको क्षमा करो। यह सब मन में न रखो।” इस विनंती से श्रीनिवास को समझाया।
आकाशराजा न धरणी देवी, पद्मावती से भी यों कहा – “बेटी! हमारी बातों को ध्यान मे रखो। तुम भाग्यवती हो। तुम्हारे पुण्य फल से श्रीहरि ने तुम्हारा पाणिग्रहण
किया है। तुम सदा उसकी सेवा करती रहो। पतिदेव की बात कभी न टालो। सावित्री, अनसूया माताओं को याद करती हुई उनकी राह पर चलती रहो। इस प्रकार हमारी और ससुराल की कीर्ति बडायी।” इस प्रकार माता -पिताओं ने पद्यावती को नीतिवचनों से समझाया। श्रीनिवास सास, ससुरों से बिदाई लेकर पद्मावती को लेकर अपने वाहन गरुड पर सवार हो गया। बाकी अतिथि लोग अपने अपने वाहनों पर आसीन हो गए और नारायणपुरम से रवाना हो गए।
 
श्रीनिवास का अगस्त्य के आग्रह से उनके अतिथि बनना-
श्रीनिवास अपने परिवार के साथ प्रयाण करते राह में अगस्त्य महामुनि के आश्रम पहुँच गए। अगस्त्य महामुनि ने श्रीनिवास का आगमन देखकर उनका स्वागत किया और उन सब का सत्कार उचितरीति ले किया। अगस्त्य महामुनि ने नूतन दम्पती श्रीनिवास पद्यावती को देखकर कहा – “आय! नूतन दम्पती छः महीनों तक पहाढ पर चढना मदा है। यह शास्त्रवचन है। इसलिए आप छ: महीने मेरे यहाँ रहकर मुझे चरितार्थ कीजिए।” श्रीनिवास ने अगस्त्य महामुनि की बात मानकर वही छ: महीने तक रहने का निश्चय किया। ब्रह्मदेव, शंकर आदि देवता श्रीनिवास से विदा लेकर अपने अपने लोक चले गए। श्रीनिवास पद्मावती के साथ अगस्त्य मुनि के यहाँ रहने लगे।
 
आगे के लेख में जानिएं।
आकाश राजा की मोक्षप्राप्ति राज्याधिकार के लिए वसुदान और तोंडमान दोनों में युद्ध और भी बहुत कुछ पढ़ने के लिए क्लिक करें   भाग 16
धन्यवाद

Related

You Might Also Like

Ramayan : Kevat Ram Prasang | दो सुन्दर प्रसंग एक श्रीकृष्ण का और केवट श्री राम जी का बहुत ही सुंदर प्रसंग एक बार जरुर पढ़ें।

Durga Saptashati – श्रीदुर्गासप्तशती | सप्तशतीके कुछ सिद्ध सम्पुट – मन्त्र | दुर्गा सप्तशती मन्त्रों की सूची

Maa Skandmata Katha : मां दुर्गा के पंचम स्वरुप मां स्कन्दमाता की कथा, जानिए कैसे पड़ा स्कन्दमाता नाम

Durga Saptashati – संपूर्ण श्रीदुर्गासप्तशती हिन्दी अनुवाद | दसवाँ अध्याय

Shri Annapurna Mata Chalisa | श्री अन्नपूर्णा चालीसा लिरिक्स इन हिन्दी

SIGN UP For NEW Post

हमारी NEW पोस्ट पाने के लिए SIGN UP करें THANK's !!
By signing up, you agree to our Terms of Use and acknowledge the data practices in our Privacy Policy. You may unsubscribe at any time.
Share This Article
Facebook X Pinterest Whatsapp Whatsapp LinkedIn Telegram Email Copy Link Print
Share
What do you think?
Happy0
Joy0
Love0
Surprise0
By MAHI SINGH
Follow:
Hi My Name is Mahi Singh, I Am Singer And Motivational Speaker Of BTX Bhakti Group !!
Previous Article तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास ( भाग 14 ) तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास ( भाग 14 )
Next Article तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास ( भाग 16 ) तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास ( भाग 16 )
Leave a Comment Leave a Comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हमसे जुड़े / Stay Connected

235.3kFollowersLike
269.1kFollowersFollow
116kFollowersPin
256.4kFollowersFollow
208.5kSubscribersSubscribe

लेटेस्ट न्यू पोस्ट

Navratri Images | Happy Chaitra Navratri | Navratri photo download
Navratri Images | Happy Chaitra Navratri | Navratri photo download
PHOTOS March 31, 2025
Mahakumbh 2025 : 144 साल बाद प्रयाग कुंभ मेला, Prayagraj Mahakumbh
Mahakumbh 2025 : 144 साल बाद प्रयाग कुंभ मेला, Prayagraj Mahakumbh
ADHYATMA January 14, 2025
Mahakumbh 2025, Mahakumbh Mela, Prayagraj Mahakumbh
Mahakumbh 2025 : Mahakumbh 144 वर्ष बाद पड़ रहा है जाने क्या है विशेष / Prayagraj Mahakumbh
ADHYATMA January 12, 2025
Gyan -आत्मज्ञान - ज्ञान और आत्मज्ञान क्या है। Gyan - Enlightenment
Gyan -आत्मज्ञान – ज्ञान और आत्मज्ञान क्या है। Gyan – Enlightenment
ADHYATMA November 27, 2024
//

Hi  हमारी वेबसाइट 20 million लोगों को धार्मिक पोस्ट, धार्मिक सामग्री प्रदान करती है। हमारी वेबसाइट आपको सभी प्रकार की धर्म ज्ञान से संबंधित प्रमाणिक जानकारी प्रदान करती है। यह वेबसाइट धर्म ज्ञान से संबंधित वर्ड में नंबर वन वेबसाइट है।।

Quick Link

  • HOME DEFAULT
  • Give Donation
  • My Shop
  • MY BOOKMARK
  • BLOG INDEX
  • MAHI SINGH

Top Categories

  • धर्म ज्ञान
  • मंत्र ज्ञान
  • ज्योतिष
  • हेल्थ टीप्स
  • मोटिवेशन
  • वेब स्टोरी

SIGN UP For NEW Post

हमारी NEW पोस्ट पाने के लिए SIGN UP करें THANK’s !!

DMCA.com Protection Status
MAHI SINGHMAHI SINGH
Follow US
© Hitechgyan.net
  • Give Donation
  • My Shop
  • Blog
  • ABOUT US
  • Contact US
  • Disclaimer
  • DMCA Policy
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
Mahisingh.in
Join us / हमसे जुड़े !!
हमारी NEW पोस्ट पाने के लिए SIGN UP करें THANK's !!
Zero spam, Unsubscribe at any time.
adbanner
Mahisingh.in Mahisingh.in
HI WELCOME BACK

SIGNING

Username or Email Address
Password

Lost your password?

Not a member? Sign Up