किरातिनी के वेष में श्रीनिवास पद्मावती का भविष्य बताना-
तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास
श्रीनिवास के मन में यह आलोचना आई। उसने फिर यह निश्चय किया कि माता से पहले ही मुझे पद्मावती से मिलना चाहिए। यह तय करके श्रीनिवास ने किरातिनी का वेष धरने के लिए लाल साडी और हरी चोली पहन
लिया। मुँह पर रंग बिरंगे सिंदूर लगाया। सिर पर टोकरी रखकर स्वतः किरातिनी बनकर बकुला माता के पहले ही नारायणपुरम पहुँच गई। वहाँ राजमहल के सामने भविष्य बताऊँ मन की इच्छा बताऊँ’ कहकर पुकारने लगी। रानी धरणी देवी ने किरातिनी की आवाज सुनकर उसको अंदर बुलवाया और कहा “पद्मावती को दिखाकर इस लडकी के मन की चिंता क्या है? सच सच बताओ तो तुझे बडा सा इनाम मिलेगा।” किरातिनी अपने सिर से टोकरी उठाकर नीचे रखा और टोकरी से सूप निकाली। रानी ने सूप में अच्छे मोती भरा दिये। किरातिनी अपने देवताओं को हल्दी कुंकुम से पूजा-पाठ करने लगी। फिर उन देवताओं को मन में ध्यान करती हुई कहने लगी। किरातिनी हाथ में डंडा लेकर पद्मावती के हाथ पर रखती हुई कहा “यह मेरी बोली नही है देवता की बोली है। तुम भाग्यवती हो, नीलमेघश्याम को अपना मन अर्पित किया है। वह शिकारी के रूप में तुम से मिला। तुम उसे पहचान न सकी। वह अपने मन को मुझे देकर चला गया। तुम उसको चिंता में हो। तुम शक न करो। तुम दोनों की शादी को कोई नहीं रोक सकता, तुम्हारा भला होगा। अब तुम चिंता मत करो। मेरी बात में यकीन नहीं हुआ तो टोकरी में देखो तुम्हारे मन की तमन्ना मिल जायगी। किरातिनी के कहने पर पद्मावती टोकरी में देखा तो वन में मिला
हुआ शिकारी खुद दीख पडा। उसे देखते ही पद्मावती शमिन्दा हुई और हँसकर मुस्कराती हुई अपने हाथों से मुँह छिपा लिया और वहाँ से उठकर चली गयी। पद्मीवती के मुँह पर मुस्कुराहट देखकर रानी धरणी देवी आश्चर्य चकित हो गई। धरणी देवी ने सहेलियों से वन की घटनाएँ पूछकर जान ली। किरातिनी रानी से भेंट पाकर वहाँ से चली गयी।
श्रीनिवास के बारे में धरणीदेवी आकाशराजा से विमर्शा करना-
किरातिनी की बात सुनने के बाद पद्मावती में जोश उठी और वह पहले की तरह उत्साह से तेजोविराजित थी। पद्मावती की हालत देखकर उसकी सहेलियाँ बहुत खुश हुई। लेकिन धरणी देवी चिंता में पड गई। वह एक अनामक शिकारी से अपनी बेटी की शादी करना नहीं चाहती। धरणीदेवी ने आकाश राजा के पास जाकर किरातिनी की सब बातें राजा को बताया। राजा ने धरणी
देवी से सब बात सुनकर रानी से कहा– “रानी!” नारद महामुनि की बातें व्यर्थ नहीं होती। उनके कहने के अनुसार जरूर होंगे। तुम चिंता मत करो। हमारे कुलगुरु
को बुलाकर उनकी सलाह लेंगे। इस प्रकार रानी को धीरज बँधाया। पद्मावती खुशी से खेलती फिरती अचानक राजा के मन्दिर मे पहुँची। वहाँ मां- बाप को एक साथ रहते देखकर उनके सामने आकर कहा कि “हे पितृदेव! मै ने उद्यानवन में जिस महापुरुष को देखा उसे अपना मन दे चुकी हूँ। उसी के साथ शादी करूँगी, दूसरे से नहीं। यह मेरा निश्चय है। सूर्य चन्द्र भी अपनी स्थिति बदल लें। लेकिन मैं अपना मन नहीं बदल सकती।” पद्मावती का यह कहना सुनकर राज-दम्पती आश्चर्य में पडा गए और यह वचन दिया कि “तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही करेंगे। यह बात सुनकर पद्मावती संतुष्ट हुई और वहाँ से चली गई।
दूत बनकर बकुला देवी आकाश राजा के पास पहुँचना-
बकुला देवी ने आकाश राजा के पास जाने के पहले वराहस्वामी से मिलकर श्रीनिवास की हालत की बराहस्वामी से बताया और उनका आशीर्वाद लेकर नारायणपुरम को रवाना हुई। बकुलादेवी ने नारायण पुरम पहुँचकर आकाशराजा के दर्शन किए। आकाशराजा और रानी धरणीदेवी दोनों ने बकुलादेवी का स्वागत किया । और विनयपूर्वक प्रणाम करके उनका आदर – सत्कार किया। बकुलादेवी ने राजा के सत्कारों को देखकर खुश हुई और उनको आशीर्वाद दिया। आकाशराजा बकुला माता से पूछा— “माता! आप का शुभ नाम क्या है? किस काम के लिए आप यहाँ पधारीं? मैं आप के लिए क्या सेवा करूँ? आकाशराजा के इन प्रियवचनों को सुनकर बकुला देवी ने कहा “हे राजा, मैं यहाँ के शेषाचल निवासिनी हूँ। मेरा नाम बकुलामालिका है। मै अपने बेटे के साथ वह रहती हूं। मेरा बेटा असमान वीर है। इन तीनों लोकों में उसको समान कोई नहीं है। समय के प्रभाव से अब निर्धन है। मेरे पुत्र श्रीनिवास ने शिकार खेलते खेलते वन में आप की पुत्री की देख लिया तो उससे प्रेम हो गया और उसी के साथ विवाह करने का निश्चय किया है। मेरा बेटा श्रीनिवास श्रीहरि का अवतार है। उस चिरंजीवी के साथ आप की पुत्री पद्मावती का विवाह हुआ तो आप धन्य होंगे और यह सच है कि आप को परमपवित्र मोक्ष मिलेगा।” बकुलादेवी की ये बातें
सुनकर आकाशराजा ने आनन्दित हुआ और कहा— “माता, मै अपने बडों से विचार करके उनकी सलाह लेकर शाीघ्र ही आप के पास खबर भेजूंगा।” बकुला देवी राजदम्पतियों को आशीर्वाद देकर वहाँ से निकली और शेषाचलम आ पहूँची।
आकाशराजा शुकमुनि को बुलवाना –
बकुलामालिका आकाशराजा से बिदा होकर जाने के बाद
आकाशराजा ने अपने भाई तोंडमान को बुलाकर कहा – “भाई, अपनी बेटी पद्मावती की शादी के बारे में अपने कुलगुरु शुक महर्षि से कुछ सलाह लेना चाहिए। इसलिए तुम तुरंत जाकर शुक महामुनि को आह्वान देकर साथ में लेकर आना चाहिए।” आकाशराजा की बात सुनकर तोंडमान तुरंत जाकर कुलगुरु शुक महर्षि को ले आया। राजा शुक महर्षि का आदर सत्कार करके पद्मावती के बारे में वन में जो घटनाएँ हुई और बकुला माता का श्रीनिवास से पद्मावती की शादी का संदेश लेकर आना और किरातिनी का पद्मावती के बारे में भविष्य का कथन और नारदमहर्षि का कथन इत्यादि सब विषयों को सविस्तार मुनि को समझाया। शुकमहामुनि ने आकाशराजा की सब बातें सुनकर राजा से कहा – “हे राजा, तुम भाग्यवान हो। श्रीनिवास सामान्य मानव नहीं है। वह केवल श्रीहरि का अवतार है। साक्षात श्रीहरि को तुम्हारा दामाद होना तुम्हारे पूर्व-जन्म सुकृत है। इसलिए तुम देर मत करो। जल्दी से जल्दी इस शादी का प्रबन्ध करो। शुकमहर्षि का कथन सुनकर आकाश राजा, धरणी देवी, तोंडमान, वसुदान और पद्मावती सब लोग खुश हो गए।
शुकमहर्षि के कहने पर आकाशराजा पद्मावती का विवाह श्रीनिवास के साथ करने का निश्चय करके देवगुरु बृहस्पति को बुलाकर गुरुदेव से यहाँ का पूरा समाचार बताया – “हे गुरुदेव, आप को इस विवाह की लग्नपत्रिका लिखना चाहिए।” राजा की विनंती सुनकर बृहस्पति ने आनन्दित होकर कहा “हे राजन्, मै धन्य हूँ। श्रीनिवास, पद्मावती की लग्नपत्रिका लिखना मेरा भाग्य है। वैकुण्ठवासी श्रीहरि को तुम्हारे दामाद होना तुम्हारा भाग्य है। तुह्मारी वजह से सर्व मानवकोटि और सर्व देवता, महर्षि, गरुड, गन्धर्व, किन्नर, किंपुरुष, यक्ष इत्यादि लोग श्रीहरि को देख सकते हैं। यह कहकर बृहस्पति पंचाङ्ग को देखकर श्रीनिवास, पद्मावती के नाम- नक्षत्रों को गणित करके एक महत्तर लग्न को वैशाख शुद्ध 10 दशमी शुक्रवार को निश्चय करके आकाशराजा को अपना निश्चय बताया। आकाश राजा ने खुश होकर बृहस्पति कहा— “हे गुरुदेव, आप ही उन घडियों से लग्नपत्रिका लिखिए।” राजा को विनंती मानकर बृहस्पति इस प्रकार लग्नपत्रिका लिखने लगे–
श्री श्री शेषाचल निवासी श्रीनिवास को, आकाशराजा लिखाकर
प्रस्तुत किया शुभ लेख, विशेषताएँ—
आगे की कथा जाने के लिए भाग 15 में पढ़े –
धन्यवाद