By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept

MAHI SINGH

MAHI SINGH-DHARMA GYAN MOTIVATION GROUP

  • Home
  • Give DonationNew
  • My Shop
  • धर्म ज्ञान
  • मंत्र ज्ञान
  • व्रत कथा
  • अध्यात्म
    • अध्यात्म
    • आरती
    • चालीसा
  • ज्योतिष
  • MAHI SINGH
  • हेल्थ टीप्स
  • YOGA/योगा
  • मोटिवेशन
    • मोटिवेशन
    • सुविचार
  • हिन्दी साहित्य
    • HINDI KAVITA/हिंदी कविता
    • HINDI STORY/ हिंदी कहानियाँ
  • गैलरी
    • फोटो
    • विडियो
    • वेब स्टोरी
  • Bookmarks
Reading: Chhath puja : नहाय खाय से शुरू हुआ छठ महापर्व, जानें क्या है पूजा विधि, और सामग्री
Share
Sign In
Notification Show More
Font ResizerAa

MAHI SINGH

MAHI SINGH-DHARMA GYAN MOTIVATION GROUP

Font ResizerAa
  • Home Default
  • Give Donation
  • My Shop
  • धर्म ज्ञान
  • मंत्र ज्ञान
  • अध्यात्म
  • ज्योतिष
  • MAHI SINGH
  • हेल्थ टीप्स
  • YOGA/योगा
  • मोटिवेशन
  • सुविचार
  • व्रत कथा
  • आरती
  • चालीसा
  • HINDI KAVITA/हिंदी कविता
  • HINDI STORY/ हिंदी कहानियाँ
  • फोटो
  • विडियो
  • वेब स्टोरी
  • My Bookmarks
  • Home
    • Home
    • Give Donation
    • My Shop
  • Categories
    • Home
    • अध्यात्म
    • MAHI SINGH
    • ज्योतिष
    • हेल्थ टीप्स
    • व्रत कथा
    • धर्म ज्ञान
    • मंत्र ज्ञान
    • मोटिवेशन
    • सुविचार
    • YOGA/योगा
    • फोटो
    • आरती
    • विडियो
    • चालीसा
    • HINDI KAVITA/हिंदी कविता
    • HINDI STORY/ हिंदी कहानियाँ
    • वेब स्टोरी
  • Bookmarks
    • My Bookmarks
    • Sitemap
Have an existing account? Sign In
Follow US
  • Give Donation
  • My Shop
  • Blog
  • ABOUT US
  • Contact US
  • Disclaimer
  • DMCA Policy
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
© Hitechgyan.net
MAHI SINGH > Blog > DHARM-GYAN > Chhath puja : नहाय खाय से शुरू हुआ छठ महापर्व, जानें क्या है पूजा विधि, और सामग्री
DHARM-GYANVRAT KATHAधर्म ज्ञानव्रत कथा

Chhath puja : नहाय खाय से शुरू हुआ छठ महापर्व, जानें क्या है पूजा विधि, और सामग्री

MAHI SINGH
Last updated: November 9, 2023 9:30 am
By MAHI SINGH
Share
16 Min Read
Chhath puja : नहाय खाय से शुरू हुआ छठ महापर्व, जानें क्या है पूजा विधि, और सामग्री
SHARE
चार दिनों का महापर्व जिसे हम छठ पर्व, छठ या षष्‍ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। कहा जाता है यह पर्व बिहारीयों का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं। यहा पर्व बिहार कि वैदिक आर्य संस्कृति कि एक छोटी सी झलक दिखाता हैं। ये पर्व मुख्यः रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार मे यहा पर्व मनाया जाता हैं।
वैसे तो यह पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह पर्व आरम्भ होता है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब ७ बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करती हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। लहसून, प्याज वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, उन घरों में लहसून, प्याज नहीं खाया जाता है।
 
 
 बिहार सूर्य मंदिर

1636473161985059 0 https://mahisingh.in/chhath-puja/


1636479899774003 0 https://mahisingh.in/chhath-puja/

 
Chhath puja की शुरुआत —
एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहा जाता हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।

1636479894741412 1 https://mahisingh.in/chhath-puja/

उत्सव का स्वरूप —
छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।
 
 नहाय खाय
छठ पर्व का पहला दिन जिसे ‘नहाय-खाय’ के नाम से जाना जाता है,उसकी शुरुआत चैत्र या कार्तिक महीने के चतुर्थी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है ।सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। उसके बाद व्रती अपने नजदीक में स्थित गंगा नदी,गंगा की सहायक नदी या तालाब में जाकर स्नान करते है। व्रती इस दिन नाखनू वगैरह को अच्छी तरह काटकर, स्वच्छ जल से अच्छी तरह बालों को धोते हुए स्नान करते हैं। लौटते समय वो अपने साथ गंगाजल लेकर आते है जिसका उपयोग वे खाना बनाने में करते है । वे अपने घर के आस पास को साफ सुथरा रखते है । व्रती इस दिन सिर्फ एक बार ही खाना खाते है । खाना में व्रती कद्दू की सब्जी ,मुंग चना दाल, चावल का उपयोग करते है। तली हुई पूरियाँ पराठे सब्जियाँ आदि वर्जित हैं। यह खाना कांसे या मिटटी के बर्तन में पकाया जाता है। खाना पकाने के लिए आम की लकड़ी और मिटटी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है। जब खाना बन जाता है तो सर्वप्रथम व्रती खाना खाते है उसके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य खाना खाते है ।
खरना और लोहंडा 
छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है,चैत्र या कार्तिक महीने के पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन व्रती पुरे दिन उपवास रखते है। इस दिन व्रती अन्न तो दूर की बात है सूर्यास्त से पहले पानी की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करती है। शाम को चावल गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग कर खीर बनाया जाता है। खाना बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता है। इन्हीं दो चीजों को पुन: सूर्यदेव को नैवैद्य देकर उसी घर में ‘एकान्त‘ करते हैं अर्थात् एकान्त रहकर उसे ग्रहण करते हैं। परिवार के सभी सदस्य उस समय घर से बाहर चले जाते हैं ताकी कोई शोर न हो सके। एकान्त से खाते समय व्रती हेतु किसी तरह की आवाज सुनना पर्व के नियमों के विरुद्ध है।
पुन: व्रती खाकर अपने सभी परिवार जनों एवं मित्रों-रिश्तेदारों को वही ‘खीर-रोटी‘ का प्रसाद खिलाती हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ‘खरना‘ कहते हैं। चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है। इसके बाद अगले 36 घंटों के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते है। मध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ बनाती है ।
संध्या अर्घ्य
छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है,चैत्र या कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। पुरे दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारिया करते है। छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसेठेकुआ, चावल के लड्डू जिसे कचवनिया भी कहा जाता है, बनाया जाता है । छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुयी टोकरी जिसे दउरा कहते है में पूजा के प्रसाद,फल डालकर देवकारी में रख दिया जाता है। वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल,पांच प्रकार के फल,और पूजा का अन्य सामान लेकर दउरा में रख कर घर का पुरुष अपने हाथो से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है। यह अपवित्र न हो इसलिए इसे सर के ऊपर की तरफ रखते है। छठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में प्रायः महिलाये छठ का गीत गाते हुए जाती है
नदी या तालाब के किनारे जाकर महिलाये घर के किसी सदस्य द्वारा बनाये गए चबूतरे पर बैठती है। नदी से मिटटी निकाल कर छठ माता का जो चौरा बना रहता है उस पर पूजा का सारा सामान रखकर नारियल चढाते है और दीप जलाती है। सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा का सारा सामान लेकर घुटने भर पानी में जाकर खड़े हो जाते है और डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करती है।
सामग्रियों में, व्रतियों द्वारा स्वनिर्मित गेहूं के आटे से निर्मित ‘ठेकुआ’ सम्मिलित होते हैं। यह ठेकुआ इसलिए कहलाता है क्योंकि इसे काठ के एक विशेष प्रकार के डिजाइनदार फर्म पर आटे की लुगधी को ठोकर बनाया जाता है। उपरोक्त पकवान के अतिरिक्त कार्तिक मास में खेतों में उपजे सभी नए कन्द-मूल, फलसब्जी, मसाले व अन्नादि यथा गन्ना, ओल, हल्दी, नारियल, नींबू(बड़ा), पके केले आदि चढ़ाए जाते हैं। ये सभी वस्तुएं साबूत (बिना कटे टूटे) ही अर्पित होते हैं। इसके अतिरिक्त दीप जलाने हेतु, नए दीपक,नई बत्तियाँ व घी ले जाकर घाट पर दीपक जलाते हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण अन्न जो है वह है कुसही केराव के दानें (हल्का हरा काला, मटर से थोड़ा छोटा दाना) हैं जो टोकरे में लाए तो जाते हैं पर सांध्य अर्घ्य में सूरजदेव को अर्पित नहीं किए जाते। इन्हें टोकरे में कल सुबह उगते सूर्य को अर्पण करने हेतु सुरक्षित रख दिया जाता है। बहुत सारे लोग घाट पर रात भर ठहरते है वही कुछ लोग छठ का गीत गाते हुए सारा सामान लेकर घर आ जाते है और उसे देवकरी में रख देते है ।
उषा अर्घ्य
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्योदय से पहले ही व्रती लोग घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा हेतु पहुंच जाते हैं और शाम की ही तरह उनके पुरजन-परिजन उपस्थित रहते हैं। संध्या अर्घ्य में अर्पित पकवानों को नए पकवानों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है परन्तु कन्द, मूल, फलादि वही रहते हैं। सभी नियम-विधान सांध्य अर्घ्य की तरह ही होते हैं। सिर्फ व्रती लोग इस समय पूरब की ओर मुंहकर पानी में खड़े होते हैं व सूर्योपासना करते हैं। पूजा-अर्चना समाप्तोपरान्त घाट का पूजन होता है। वहाँ उपस्थित लोगों में प्रसाद वितरण करके व्रती घर आ जाते हैं और घर पर भी अपने परिवार आदि को प्रसाद वितरण करते हैं। व्रति घर वापस आकर गाँव के पीपल के पेड़ जिसको ब्रह्म बाबा कहते हैं वहाँ जाकर पूजा करते हैं। पूजा के पश्चात् व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं जिसे पारण या परना कहते हैं। व्रती लोग खरना दिन से आज तक निर्जला उपवासोपरान्त आज सुबह ही नमकयुक्त भोजन करते हैं।
छठ पूजा सामग्री —
 
 नए वस्त्र, बांस की दो बड़ी टोकरी या सूप, थाली, पत्ते लगे गन्ने, बांस या फिर पीतल के सूप, दूध, जल, गिलास, चावल, सिंदूर, दीपक, धूप, लोटा, पानी वाला नारियल, अदरक का हरा पौधा, नाशपाती, शकरकंदी, हल्दी, मूली, मीठा नींबू, शरीफा, केला, कुमकुम, चंदन, सुथनी, पान, सुपारी, शहद, अगरबत्ती, धूप बत्ती, कपूर, मिठाई, गुड़, चावल का आटा, गेहूं।
छठ पूजा विधि —
 
-छठ पर्व के दिन प्रात:काल स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेते समय इस मन्त्र का उच्चारण किया जाता है-
ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
-पूरे दिन निराहार और निर्जला व्रत रखा जाता है। फिर शाम के समय नदी या तालाब में जाकर स्नान किया जाता है और सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है।
-अर्घ्य देने के लिए बांस की तीन बड़ी टोकरी या बांस या पीतल के तीन सूप लें। इनमें चावल, दीपक, लाल सिंदूर, गन्ना, हल्दी, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी रखें। साथ में थाली, दूध और गिलास ले लें। फलों में नाशपाती, शहद, पान, बड़ा नींबू, सुपारी, कैराव, कपूर, मिठाई और चंदन रखें। इसमें ठेकुआ, मालपुआ, खीर, सूजी का हलवा, पूरी, चावल से बने लड्डू भी रखें। सभी सामग्रियां टोकरी में सजा लें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में एक दीपक भी जला लें।
इसके बाद नदी में उतर कर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें।
ऊं एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्य नमोअस्तुते॥
छठ पूजा का महत्व —
 इस पर्व में सूर्य देव की पूजा की जाती है उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य देव के साथ-साथ छठी मैया की भी पूजा होती है। मान्यता है कि छठी मैया संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है।

1636479888894055 2 https://mahisingh.in/chhath-puja/

पौराणिक और लोक कथाएँ — 
छठ पूजा की परम्परा और उसके महत्त्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।
 
रामायण में
एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत में
 
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।
कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
 
पुराणों में
एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

इस लेख में दी गई जानकारी पसंद आए तो हमारी वेबसाइट को फॉलो करें अपने मित्रों के साथ शेयर करें।

Related

You Might Also Like

Durga Saptashati – संपूर्ण श्रीदुर्गासप्तशती हिन्दी अनुवाद | छठा अध्याय

Ramayan : रामायण जटायु प्रसंग, रामायण प्रसंग, jatayu Prasang

Durga Saptashati – श्रीदुर्गासप्तशती | क्षमा प्रार्थना – संस्कृत

Durga Saptashati – संपूर्ण श्रीदुर्गासप्तशती हिन्दी अनुवाद | देवी-कवच

Janmashtami Katha : भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में लिया था आठवां अवतार, पढ़ें श्री कृष्ण जन्मकथा | कृष्णा जन्म पौराणिक कथा जरूर पढ़ें।

TAGGED:Chhath pujaChhath puja kathaKathaVrat Kathaछठ पूजा कब हैछठ पूजा का महत्वछठ पूजा किस दिन हैछठ पूजा क्यों मनाया जाता हैछठ पूजा पहले किसने कियामहापर्व छठ पूजा कब है

SIGN UP For NEW Post

हमारी NEW पोस्ट पाने के लिए SIGN UP करें THANK's !!
By signing up, you agree to our Terms of Use and acknowledge the data practices in our Privacy Policy. You may unsubscribe at any time.
Share This Article
Facebook X Pinterest Whatsapp Whatsapp LinkedIn Telegram Email Copy Link Print
Share
What do you think?
Happy0
Joy0
Love0
Surprise0
By MAHI SINGH
Follow:
Hi My Name is Mahi Singh, I Am Singer And Motivational Speaker Of BTX Bhakti Group !!
Previous Article Happy Diwali : Diwali Puja Vidhi - दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी व गणेश पूजन विधान एवं मंत्र Happy Diwali : Diwali Puja Vidhi – दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी व गणेश पूजन विधान एवं मंत्र
Next Article Utpanna Ekadashi Vrat Katha : उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा Utpanna Ekadashi Vrat Katha : उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
Leave a Comment Leave a Comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हमसे जुड़े / Stay Connected

235.3kFollowersLike
269.1kFollowersFollow
116kFollowersPin
256.4kFollowersFollow
208.5kSubscribersSubscribe

लेटेस्ट न्यू पोस्ट

Navratri Images | Happy Chaitra Navratri | Navratri photo download
Navratri Images | Happy Chaitra Navratri | Navratri photo download
PHOTOS March 31, 2025
Mahakumbh 2025 : 144 साल बाद प्रयाग कुंभ मेला, Prayagraj Mahakumbh
Mahakumbh 2025 : 144 साल बाद प्रयाग कुंभ मेला, Prayagraj Mahakumbh
ADHYATMA January 14, 2025
Mahakumbh 2025, Mahakumbh Mela, Prayagraj Mahakumbh
Mahakumbh 2025 : Mahakumbh 144 वर्ष बाद पड़ रहा है जाने क्या है विशेष / Prayagraj Mahakumbh
ADHYATMA January 12, 2025
Gyan -आत्मज्ञान - ज्ञान और आत्मज्ञान क्या है। Gyan - Enlightenment
Gyan -आत्मज्ञान – ज्ञान और आत्मज्ञान क्या है। Gyan – Enlightenment
ADHYATMA November 27, 2024
//

Hi  हमारी वेबसाइट 20 million लोगों को धार्मिक पोस्ट, धार्मिक सामग्री प्रदान करती है। हमारी वेबसाइट आपको सभी प्रकार की धर्म ज्ञान से संबंधित प्रमाणिक जानकारी प्रदान करती है। यह वेबसाइट धर्म ज्ञान से संबंधित वर्ड में नंबर वन वेबसाइट है।।

Quick Link

  • HOME DEFAULT
  • Give Donation
  • My Shop
  • MY BOOKMARK
  • BLOG INDEX
  • MAHI SINGH

Top Categories

  • धर्म ज्ञान
  • मंत्र ज्ञान
  • ज्योतिष
  • हेल्थ टीप्स
  • मोटिवेशन
  • वेब स्टोरी

SIGN UP For NEW Post

हमारी NEW पोस्ट पाने के लिए SIGN UP करें THANK’s !!

DMCA.com Protection Status
MAHI SINGHMAHI SINGH
Follow US
© Hitechgyan.net
  • Give Donation
  • My Shop
  • Blog
  • ABOUT US
  • Contact US
  • Disclaimer
  • DMCA Policy
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
Mahisingh.in
Join us / हमसे जुड़े !!
हमारी NEW पोस्ट पाने के लिए SIGN UP करें THANK's !!
Zero spam, Unsubscribe at any time.
adbanner
Mahisingh.in Mahisingh.in
HI WELCOME BACK

SIGNING

Username or Email Address
Password

Lost your password?

Not a member? Sign Up