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MAHI SINGH > Blog > VRAT KATHA > Ekadashi Vrat Katha > Indira Ekadashi Vrat Katha : इंदिरा एकादशी की व्रत कथा | पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पढ़ें इंदिरा एकादशी व्रत कथा
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Indira Ekadashi Vrat Katha : इंदिरा एकादशी की व्रत कथा | पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पढ़ें इंदिरा एकादशी व्रत कथा

MAHI SINGH
Last updated: January 27, 2024 8:31 pm
By MAHI SINGH
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7 Min Read
Indira Ekadashi Vrat Katha : इंदिरा एकादशी की व्रत कथा | पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पढ़ें इंदिरा एकादशी व्रत कथा
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Indira Ekadashi Vrat Katha ( इंदिरा एकादशी की व्रत कथा )


प‍ितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाली एकादशी को इंद‍िरा एकादशी कहा जाता है। हिंदू सनातन धर्म में एकादशी का व‍िशेष महत्‍व है। मान्‍यता है क‍ि इस द‍िन भगवान विष्णु की व‍िध‍ि-व‍िधान से पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत करने से मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो भक्त एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें एकादशी व्रत कथा पढ़ना और सुनना चाहिए, उससे प‍ितरों को मुक्ति तो म‍िलती ही है साथ ही घर में भी सुख-समृद्धि का वास होता है। तो आइए जान लेते हैं क्‍या है इंद‍िरा एकादशी की व्रत कथा? 

( इंदिरा एकादशी की व्रत कथा )

भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति से भाव विह्वल होकर अर्जुन ने कहा- “हे प्रभु! अब आप कृपा कर आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा को कहिए। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसका व्रत करने से कौन-सा फल मिलता है। कृपा कर विधानपूर्वक कहिए।”

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भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा – “हे धनुर्धर! आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम इन्दिरा है। इस एकादशी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। नरक में गए हुए पितरों का उद्धार हो जाता है। हे अर्जुन! इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही मनुष्य को अनंत फल की प्राप्ति होती है। तुम ध्यानपूर्वक श्रवण करो- मैं यह कथा सुनाता हूँ,

सतयुग में महिष्मती नाम की नगरी में इन्द्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा राज्य करता था। वह पुत्र, पौत्र, धन-धान्य आदि से पूर्ण था। उसके शत्रु सदैव उससे भयभीत रहते थे। एक दिन राजा अपनी राज्य सभा में सुखपूर्वक बैठा था कि महर्षि नारद वहां आए। नारदजी को देखकर राजा आसन से उठा, प्रणाम करके उन्हें आदर सहित आसन दिया। तब महर्षि नारद ने कहा- ‘हे राजन! आपके राज्य में सब कुशल से तो हैं? मैं आपकी धर्मपरायणता देखकर अत्यंत प्रसन्न हूँ।’

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राजा ने कहा – ‘हे देवऋषि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब -कुशलपूर्वक हैं तथा आपकी कृपा से मेरे सभी यज्ञ कर्म आदि सफल हो गए हैं। हे महर्षि अब आप कृपा कर यह बताएं कि आपका यहां आगमन किस प्रयोजन से हुआ है? मैं आपकी क्या सेवा करूं?’

महर्षि नारद ने कहा – ‘हे नृपोत्तम! मुझे एक महान विस्मय हो रहा है कि एक बार जब मैं ब्रह्मलोक से यमलोक गया था, तब मैंने यमराज की सभा में तुम्हारे पिता को बैठे देखा। तुम्हारे पिता महान ज्ञानी, दानी तथा धर्मात्मा थे, मगर एकादशी के व्रत के बिगड़ जाने के कारण यह यमलोक को गए हैं। तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए एक संदेश भेजा है।’

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राजा ने उत्सुकता से पूछा – ‘क्या संदेश है महर्षि? कृपा कर यथाशीघ्र कहें।’

राजन तुम्हारे पिता ने कहा है – ‘महर्षि! आप मेरे पुत्र इन्द्रसेन, जो कि महिष्मती नगरी का राजा है, के पास जाकर एक संदेश देने की कृपा करें कि मेरे किसी पूर्व जन्म के बुरे कर्म के कारण ही मुझे यह लोक मिला है। यदि मेरा पुत्र आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की इन्दिरा एकादशी का व्रत करे और उस व्रत के फल को मुझे दे दे तो मेरी मुक्ति हो जाए। मैं भी इस लोक से छूटकर स्वर्गलोक में वास करूं।’

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इन्द्रसेन को अपने पिता के यमलोक में पड़े होने की बात सुनकर महान दुख हुआ और उसने नारद से कहा – ‘हे नारदजी! यह तो बड़े दुख का समाचार है कि मेरे पिता यमलोक में पड़े हैं। मैं उनकी मुक्ति का उपाय अवश्य करूंगा। आप मुझे इन्दिरा एकादशी व्रत का विधान बताने की कृपा करें।’

नारदजी ने कहा – ‘हे राजन! आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रातःकाल श्रद्धापूर्वक स्नान करना चाहिए। इसके उपरांत दोपहर को भी स्नान करना चाहिए। उस समय जल से निकलकर श्रद्धापूर्वक पितरों का श्राद्ध करें और उस दिन एक समय भोजन करें और रात्रि को पृथ्वी पर शयन करें। इसके दूसरे दिन अर्थात एकादशी के दिन नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि के उपरांत भक्तिपूर्वक व्रत को धारण करें और इस प्रकार संकल्प करें – ‘मैं आज निराहार रहूँगा और सभी भोगों का त्याग कर दूंगा। इसके उपरांत अगले दिन भोजन करूंगा। हे ईश्वर! आप मेरी रक्षा करने वाले हैं। आप मेरे उपवास को सम्पूर्ण कराइए।’

इस प्रकार आचरण करके दोपहर को सालिगरामजी की प्रतिमा को स्थापित करें और ब्राह्मण को बुलाकर भोजन कराएं तथा दक्षिणा दें।

भोजन का कुछ हिस्सा गाय को अवश्य दें और भगवान विष्णु का धूप, नैवेद्य आदि से पूजन करें तथा रात्रि को जागरण करें। तदुपरांत द्वादशी के दिन मौन रहकर बंधु-बांधवों सहित भोजन करें। हे राजन! यह इन्दिरा एकादशी के व्रत की विधि है। यदि तुम आलस्य त्यागकर इस एकादशी के व्रत को करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्ग के अधिकारी बन जाएंगे।’

नारदजी राजा को सब विधान समझाकर आलोप हो गए। राजा ने इन्दिरा एकादशी के आने पर उसका विधानपूर्वक्र व्रत किया। बंधु-बांधवो सहित इस व्रत के करने से आकाश से पुष्पों की वर्षा हुई और राजा के पिता यमलोक से रथ पर चढ़कर स्वर्ग को चले गए।

इस एकादशी के प्रभाव से राजा इन्द्रसेन भी इहलोक में सुख भोगकर अंत में स्वर्गलोक को गया।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे सखा! यह मैंने तुम्हारे सामने इन्दिरा एकादशी के माहात्म्य का वर्णन किया है। इस कथा के पढ़ने व सुनने मात्र से ही सभी पापों का शमन हो जाता है और अंत में मनुष्य स्वर्गलोक का अधिकारी बनता है।”

कथा-सार

मनुष्य जो भी प्रण करे, उसे चाहिए कि वह उसको तन-मन-धन से पूरा करें। किसी भी कार्य का प्रण करके उसे तोड़ना नहीं चाहिए।

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