घटस्थापना पूजा विधि / Navratri
Navratri : घटस्थापना, नवरात्रि के महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। यह नौ दिनों के उत्सव के आरम्भ का प्रतीक है। हमारे शास्त्रों द्वारा नवरात्रि के आरम्भ में एक निश्चित समयावधि में घटस्थापना करने हेतु भलीभाँति परिभाषित नियम एवं दिशानिर्देश वर्णित किये गये हैं। घटस्थापना देवी शक्ति के आह्वान की प्रक्रिया है तथा हमारे शास्त्रों की चेतावनी के अनुसार, अशुभ काल में घटस्थापना करने से देवी शक्ति कुपित हो सकती हैं। अमावस्या तथा रात्रिकाल में घटस्थापना निषिद्ध होती है, प्रतिपदा तिथि के दिन का पहला एक तिहायी भाग घटस्थापना हेतु सर्वाधिक शुभ समय माना जाता है।
यदि किसी कारणवश यह समय उपलब्ध नहीं है, तो अभिजीत मुहूर्त में भी घटस्थापना की जा सकती है। घटस्थापना के समय, चित्रा नक्षत्र तथा वैधृति योग को टालने की सलाह दी जाती है, परन्तु इन्हें वर्जित नहीं किया गया है। सर्वाधिक विचारणीय महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि, घटस्थापना हिन्दु मध्याह्न से पूर्व प्रतिपदा के समय की जाती है।
दुर्गा पूजा विधि
घटस्थापना सामग्री / Navratri
1- सप्त धान्य रोपित करने हेतु एक चौड़ा एवं खुला मिट्टी का पात्र
2- सप्त धान्य रोपित करने हेतु स्वच्छ मिट्टी
3- सप्त धान्य अथवा सात भिन्न-भिन्न प्रकार के अन्न के बीज
4- एक लघु आकर का पीतल अथवा मिट्टी का कलश (घट)
5- कलश में भरने हेतु शुद्ध जल अथवा गंगा जल
6- पवित्र सूत्र, मौली अथवा कलावा
7- इत्र
8- सुपार
9- कलश में डालने हेतु सिक्का
10- अशोक वृक्ष अथवा आम के पाँच पत्ते
11- कलश ढकने हेतु एक पात्र का ढक्कन
12- कलश के ऊपरी पात्र में रखने हेतु कच्चे चावल अथवा बिना टूटे हुये चावल जिन्हें अक्षत के नाम से जाना जाता है।
13- ना छिला हुआ जटा वाला नारियल
14- नारियल लपेटने हेतु लाल वस्त्र
15- पुष्प एवं पुष्पहार (विशेषतः गैंदा)
16- दूर्वा घास
Navratri / कलश निर्माण
देवी-देवताओं के आवाहन से पूर्व कलश निर्माण किया जाता है।
सर्वप्रथम मिट्टी के बड़े पात्र को लें, जिसका उपयोग कलश स्थापित करने हेतु किया जाना है। गमलें में मिट्टी की एक परत बिछायें, तत् पश्चात् अन्न के दानों (बीजों) को बिखेरें। पुनः मिट्टी की एक परत बिछायें तथा पात्र के किनारे-किनारे अन्न के दानों को रोपें। अब एक मिट्टी की तीसरी एवं अन्तिम परत बिछायें तथा मिट्टी को व्यवस्थित करने हेतु आवश्यकतानुसार जल दें। अब कलश लें तथा उसके गले पर कलावा (मौली) बाँधने के पश्चात् उसे गले तक गंगाजल से भर लें। कलश के जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत तथा सिक्का डालें।
कलश को ढँकने से पूर्व अशोक वृक्ष के पाँच पत्तों को कलश के मुख पर रखें तथा अन्त में उसे मिट्टी के छोटे पात्र से ढँक दें। अब बिना छिला हुआ जटा वाला नारियल लें तथा उसे लाल वस्त्र में लपेट कर मौली से बाँध दें। नारियल को लाल वस्त्र एवं मौली से बाँधने के पश्चात् उसे उस कलश के मुख पर रख दें, अब यह कलश देवी दुर्गा के आवाहन के लिये उपयुक्त है।
देवी दुर्गा आवाहन करें / Navratri
अब देवी- देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि ‘हे समस्त देवी-देवता, आप सभी 9 दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों आह्व करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवतागण कलश में विराजमान हैं, कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूलमाला अर्पित
पंचोपचार पूजा / Navratri
पंचोपचार पूजा के नामानुसार ही, यह पूजन पाँच प्रकार की पूजन सामग्रियों द्वारा किया जाता है। सर्वप्रथम कलश तथा आवाहन किये गये सभी देवी-देवताओं के निमित्त दीप प्रज्वलित करें। दीपदान के उपरान्त कलश को धुप, पुष्प तथा इत्र अर्पित करें। अन्त में नैवेद्य के रूप में कलश को फल एवं मिष्ठान अर्पित करते हुये पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें।