Aja Ekadashi Vrat Katha – एक बार कुंती पुत्र युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा – भगवन् ! कृपा करके यह बताइये कि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में कौन सी एकादशी होती है, और उसकी विधि क्या है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है ?
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजेन्द्र ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। वह सब पापों का नाश करने वाली बतायी गयी है। जो मनुष्य इस दिन भगवान ह्रषीकेश का व्रत पूजन करता है। उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ कराने से अधिक पुण्य की प्राप्ति होता है। अजा एकादशी व्रत के पूजा के समय आप को व्रत कथा का श्रवण या पाठ जरुर करना चाहिए। ऐसा करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
आइए जानते हैं अजा एकादशी व्रत कथा के बारे में।
प्राचीन काल में हरिश्चंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा हुए राजा हरिश्चंद्र अपनी सत्य निष्ठा और ईमानदारी के लिए ही जाने जाते थे एक बार देवताओं ने इनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई राजा ने स्वप्न में देखा कि ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना सारा राजपाट दान कर दिया है। जब अगले दिन राजा हरिशचंद्र विश्वामित्र को अपना समस्त राज-पाठ को सौंप कर जाने लगे तो विश्वामित्र ने राजा हरिशचंद्र से दक्षिणा स्वरुप 500 स्वर्ण मुद्राएं दान में मांगी राजा ने उनसे कहा कि पांच सौ क्या, आप जितनी चाहें स्वर्ण मुद्राएं ले लीजिए. इस पर विश्वामित्र हंसने लगे और राजा को याद दिलाया कि राजपाट के साथ राज्य का धन कोष भी वे दान कर चुके हैं और दान की हुई वस्तु दोबारा दान नहीं की जाती तब राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचकर स्वर्ण मुद्राएं हासिल की लेकिन वे भी पांच सौ नहीं हो पा रही थीं। जिसके बाद राजा हरिशचंद्र ने खुद को भी बेच डाला और सोने की सभी मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दीं, राजा हरिशचंद्र ने जहां खुद को बेचा वह एक श्मशान का चांडाल था। चांडाल ने राजा हरिशचंद्र को श्मशान भूमि में दाह संस्कार के लिए कर वसूली का काम दिया। हरिशचंद्र चांडाल का दास बनकर सत्य को धारण करता हुआ मृतकों का वस्त्र ग्रहण करता रहा मगर किसी प्रकार से सत्य से विचलित नहीं हुआ। कई बार राजा हरिश्चंद्र का विचार करता सोचता मैं कहां जाऊं क्या करूं जिससे मेरा उद्धार हो इस प्रकार राजा को कई वर्ष बीत जाते हैं। एक दिन राजा इसी चिंता में बैठा हुआ था कि उनके पास गौतम ऋषि आए। और राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और अपनी सारी दु:खभरी कहानी सुनाया यह बात सुनकर गौतम ऋषि कहने लगे।
राजन् ! भादों के कृष्णपक्ष में अत्यन्त कल्याणमयी ‘अजा’ नाम की एकादशी आ रही है जो पुण्य प्रदान करने वाली है। इसका व्रत करो, इससे पाप का अन्त होगा तुम्हारे भाग्य में आज से सातवें दिन एकादशी है । उस दिन उपवास करके रात में जागरण करना ऐसा कहकर महर्षि गौतम अन्तर्धान हो गये। मुनि की बात सुनकर राजा हरिश्चन्द्र ने उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा सारे दुःखों से पार हो गये उन्हें पत्नी पुनः प्राप्त हुई और पुत्र का जीवन मिल गया। आकाश में दुन्दुभियाँ बज उठीं । देवलोक से फूलों की वर्षा होने लगी। एकादशी के प्रभाव से राजा ने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और अन्त में वे पुरजन तथा परिजनों के साथ स्वर्गलोक को प्राप्त हो गये।
श्रीकृष्ण कहते हैं – हेराजन! यह सब अजा एकादशी के प्रभाव से ही हुआ। अतः जो मनुष्य
विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं।
उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते अंत में वे स्वर्ग लोग जाते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।