बलराम जन्म पौराणिक कथा
वैसे तो आप सभी जानते हैं। की हिंदू धर्म में भाद्रपद का महीना हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। और आप सभी को पता होगा ।भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम का जन्म भी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार ठीक उसके दो दिन बाद हम कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं। अष्टमी तिथि के दिन विष्णु जी के आठवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। वैसे तो धर्म शास्त्रों की माने तो शास्त्र भी यही कहते हैं कि जब-जब धर्म की हानि हुई तब – तब भगवान नारायण ने धरती पर धर्म की स्थापना करने के लिए अवतार लिया है तब-तब शेषनाग ने भी उनका साथ देने के लिए किसी न किसी रूप में जन्म लिया है। द्वापर युग में भगवान नारायण के अवतार श्रीकृष्ण के बड़े भाई तो त्रेता युग में भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में इनका जन्म हुआ। और इस युग में बलराम ने भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप जन्म लिया था। द्वापर युग में भगवान कृष्ण के बड़े भाई होने के पीछे एक प्रसंग है, एक समय की बात है जब क्षीर सागर छोड़कर शेषनाग विष्णुजी से गुहार लगाते हैं। नारायण इस बार आप मुझे अपना बड़ा भाई बनाकर सेवा का अवसर प्रदान करें। हे प्रभु रामावतार में आपने मुझे छोटा भाई बनाया। अगर मैं बड़ा भाई होता तो कभी भी आपको वन जाने की अनुमति नहीं देता। हे प्रभु इस बार जब भी आप कोई अवतार धारण करें मुझे बड़ा भाई बनाकर सेवा का अवसर प्रदान करें। तभी नारायण ने कहा। हे शेषनाग आप द्वापर युग में देवकी के सातवें पुत्र के रूप में जन्म लोगे और मेरे बड़े भाई बलराम के नाम से जाने जाओगे। इतना कहकर नारायण शेषनाग को तथास्तु कह अंतर्ध्यान हो गए। वैसे तो सभी जानते हैं। बलराम जी को हलधर मतलब हलधारण करने वाले के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए उनकी जयंती को हल षष्ठी के नाम से भी मनाया जाता है। जो महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं। वो इस दिन हल की जुताई से उगे हुए अनाज नहीं खाती हैं। इस दिन महिलाएं अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं।
आइए जानते हैं। बलराम के जन्म की पौराणिक कथा के बारे में….
बलराम जन्म की पौराणिक कथा –
कथा के अनुसार जब मथुरा नरेश कंस अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को विदा करा रहे थे, उसी समय आकाशवाणी हुई। हे कंस देवकी और वासुदेव की आंठवी संतान तेरा काल बनेगा। जब कंस को पता चला की वासुदेव और देवकी की संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी। तो उसने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया और उनकी सभी 6 जन्मी संतानों का वध कर डाला देवकी को जब सांतवा पुत्र होना था। तभी नारायण ने अपनी योगमाया से देवकी के गर्भ में पल रहे सातवें पुत्र को वसुदेव की बड़ी रानी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। जिससे कंस को पता नहीं चला, और उसने समझा देवकी का संतवा पुत्र जिंदा नहीं हैं। उधर माता रोहिणी के गर्भ से बलराम कृष्ण के बड़े भाई के रूप में नंदबाबा के यहां जन्म हुआ। बलराम मल्लयुद्ध, कुश्ती और गदायुद्ध में पारंगत थे तथा हाथ में हल धारण करते थे। इसके बाद देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रुप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ।
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