Dhanteras Katha – कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस तिथि को समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इस वजह से इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी तिथि के नाम से ही जाना जाता है। भगवान धन्वंतरि के अलावा इस दिन माता लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा की जाती है। इस दिन दीपावली का पर्व शुरू हो जाता है धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है।
जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। आइए जानते हैं धनतेरस क्यों मनाया जाता है और इसकी कहानी क्या है।
धनतेरस क्यों मनाते हैं। ( Dhanteras Katha )
एकबार मृत्यु के देवता यमराज ने यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में तुमको कभी किसी पर दया आती है। यमदूतों ने कहा कि नहीं महाराज, हम तो केवल आपके दिए हुए निर्देषों का पालन करते हैं। फिर यमराज ने कहा कि बेझिझक होकर बताओं कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में दया आई है। तब एक यमदूत ने कहा कि एकबार ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर हृदय पसीज गया।
एक दिन हंस नाम का राजा शिकार पर गया था और वह जंगल के रास्ते में भटक गया था और भटकते-भटकते दूसरे राजा की सीमा पर चला गया। वहां एक हेमा नाम का शासक था, उसने पड़ोस के राजा का आदर-सत्कार किया। उसी दिन राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म भी दिया। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
दीपावली के दिन मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए कथा जरूर पढ़ें –
ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे।
जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे।
उसी समय उनमें से एक ने यम देवता से विनती की- हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले, हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं, सो सुनो।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं। यह थी। Dhanteras Katha
महिमा belpatra की – https://youtu.be/MV-DnAjDNdw?si=Vj6yiG9FOSqez2WD