।। श्रीहरि: ।।
।। प्रकाशकीय निवेदन ।।
भारतीय संस्कृतिका कोई भी प्रेमी आज दुर्गतिनाशिनी शक्ति पराम्बा भगवती दुर्गा एवं उनकी उपासनाके लिये सर्वोत्तम और सर्वमान्य ग्रन्थरत्न दुर्गासप्तशतीसे अपरिचित नहीं है। यह एक आशीर्वादात्मक ग्रन्थरत्न है। आजतक न जाने कितने भक्त इस ग्रन्थके द्वारा भगवतीकी उपासना करके अपने मनोरथ सिद्ध कर चुके हैं। इस ग्रन्थके नित्यपाठसे जहाँ समस्त कामनाओंकी सिद्धि होती है, वहीं भगवतीकी कृपा और मुक्ति भी सहज ही प्राप्त की जा सकती है। इसलिये प्रत्येक श्रद्धालु चाहे वह किसी भी देश, वेष, मत, सम्प्रदायसे सम्बन्धित क्यों न हो- दुर्गासप्तशतीका आश्रय ग्रहण कर सकता है।
श्रद्धालु भक्तोंके कल्याणार्थ गीताप्रेससे इस दिव्य ग्रन्थके केवल मूल, हिन्दी अनुवाद-अजिल्द तथा सजिल्द अनेक संस्करण प्रकाशित किये गये हैं। इसी परम्परामें संस्कृतज्ञानसे अनभिज्ञ जनताकी सुविधाको ध्यानमें रखते हुए भगवतीकी कृपाके इस सुन्दर इतिहास (दुर्गासप्तशती) का मात्र हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया जा रहा है। आशा है, श्रद्धालु भक्त इसे अपनाकर देवीकी कृपासे अपना अभीष्ट सिद्ध करेंगे।