Ekadashi – हमारे सनातन हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
Ekadashi Vrat Katha
हमारे सनातन धर्म में व्रत एवं उपवास का महत्वपूर्ण स्थान है। शास्त्रानुसार Ekadashi का व्रत सभी हिंदू को करना चाहिए। वैष्णवों के लिए तो एकादशी का व्रत करना अनिवार्य है। शास्त्रों में एकादशी का व्रत महान पुण्यदायी व पापों को क्षय करने वाला बताया गया है।
12 माह में कौन-कौन सी Ekadashi आती है, जानिए
पूरे वर्ष की एकादशियों के नाम
Ekadashi का नाम मास पक्ष
1 – कामदा Ekadashi चैत्र शुक्ल
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की Ekadashi का नाम कामदा एकादशी है। यह समस्त पापों को नष्ट करने वाली है। जैसे अग्नि काष्ठ को जलाकर राख कर देती है, वैसे ही कामदा एकादशी के पुण्य के प्रभाव से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होती है। इसके उपवास से मनुष्य निकृष्ट योनि से मुक्त हो जाता है और अन्ततः उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। अब मैं इस एकादशी का माहात्म्य सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो।
श्रीकृष्ण के प्रिय सखा अर्जुन ने कहा – “हे कमलनयन! मैं आपको कोटि-कोटि नमन करता हूँ। हे जगदीश्वर! मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप कृपा कर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी कथा का भी वर्णन सुनाइये। इस Ekadashi का क्या नाम है? इस व्रत को पहले किसने किया और इसके करने से किस फल की प्राप्ति होती है?”
( Kamada Ekadashi ) कथा-सार
प्राणी अपने सुखों का चिन्तन करे, यह बुरा नहीं है, किन्तु समय-असमय ऐसा चिन्तन प्राणी को उसके दायित्वों से विमुख कर देता है, जिससे उसे भयंकर कष्ट भोगने पड़ते हैं। गन्धर्व ललित ने भी राक्षस होकर निन्दित कर्म किये और कष्ट भोगे, परन्तु भगवान श्रीहरि की अनुकम्पा का कोई अन्त नहीं है।
2 – वरूथिनी Ekadashi वैशाख कृष्ण
अर्जुन की बात सुन श्रीकृष्ण ने कहा- “हे अर्जुन! वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम Varuthini Ekadashi है। यह सौभाग्य प्रदान करने वाली है। इसका उपवास करने से प्राणी के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यदि इस उपवास को दुखी सधवा स्त्री करती है, तो उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ( Varuthini Ekadashi ) के प्रभाव से ही राजा मान्धाता को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी।
( Varuthini Ekadashi ) कथा-सार
सौभाग्य का आधार संयम है। हर प्रकार संयम रखने से मनुष्य के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। यदि प्राणी में संयम नहीं है तो उसके द्वारा किये गए तप, त्याग व भक्ति-पूजा आदि सब व्यर्थ हो जाते हैं।
3 – मोहिनी Ekadashi वैशाख शुक्ल
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम ( मोहिनी एकादशी ) है। इस Ekadashi का उपवास करने से मनुष्य के सभी पाप तथा क्लेश नष्ट हो जाते हैं। इस उपवास के प्रभाव से मनुष्य मोह के जाल से मुक्त हो जाता है।
( Mohini Ekadashi ) कथा-सार
प्राणी को सदैव सन्तों का संग करना चाहिये। सन्तों की संगत से मनुष्य को न केवल सद्बुद्धि प्राप्त होती है, अपितु उसके जीवन का उद्धार हो जाता है। पापियों की संगत प्राणी को नरक में ले जाती है।
4 – अपरा Ekadashi ज्येष्ठ कृष्ण
ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अपरा है, क्योंकि यह अपार धन और पुण्यों को देने वाली तथा समस्त पापों का नाश करने वाली है। जो मनुष्य इसका व्रत करते हैं, उनकी लोक में प्रसिद्धि होती है। ( Apara Ekadashi ) के व्रत के प्रभाव से ब्रह्महत्या, प्रेत योनि, दूसरे की निन्दा आदि से उत्पन्न पापों का नाश हो जाता है, इतना ही नहीं, स्त्रीगमन, झूठी गवाही, असत्य भाषण, झूठा वेद पढ़ना, झूठा शास्त्र बनाना, ज्योतिष द्वारा किसी को भरमाना, झूठा वैद्य बनकर लोगो को ठगना आदि भयंकर पाप भी अपरा ( Ekadashi ) के व्रत से नष्ट हो जाते हैं।
( Apara Ekadashi ) कथा-सार
अपरा अर्थात अपार या अतिरिक्त, जो प्राणी ( Ekadashi ) का व्रत करते हैं, उन्हें भगवान श्रीहरि विष्णु की अतिरिक्त भक्ति प्राप्त होती है। भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है।
5 – निर्जला Ekadashi ज्येष्ठ शुक्ल
Ekadashi का पुण्य सभी तीर्थों और दान के बराबर है। एक दिन निर्जला रहने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें मृत्यु के समय भयानक यमदूत नहीं दिखाई देते, बल्कि भगवान श्रीहरि के दूत स्वर्ग से आकर उन्हें पुष्पक विमान पर बैठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। संसार में सबसे उत्तम निर्जला एकादशी का व्रत है।
( Nirjala Ekadashi ) कथा-सार
अपनी कमजोरियों को अपने गुरुजनों व परिवार के बड़ों से कदापि नहीं छुपाना चाहिये। उन पर विश्वास रखते हुए भक्त को चाहिये कि वह अपना कष्ट उन्हें बताये, ताकि वे उसका कोई उचित उपाय कर सकें। उपाय पर श्रद्धा और विश्वासपूर्वक अमल करना चाहिये।
6 – योगिनी Ekadashi आषाढ़ कृष्ण
आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की Ekadashi का नाम योगिनी एकादशी है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत इहलोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला है। हे अर्जुन! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
( Yogini Ekadashi ) कथा-सार
मनुष्य को पूजा आदि धर्म में आलस्य या प्रमाद नहीं करना चाहिए, अपितु मन को संयम में रखकर सदैव भगवान की सेवा में तत्पर रहना चाहिए।
7 – देवशयनी Ekadashi आषाढ़ शुक्ल
अर्जुन ने कहा- “हे श्रीकृष्ण! आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की ( Ekadashi ) का क्या व्रत है? उस दिन किस देवता का पूजन होता है? उसका क्या विधान है? कृपा कर यह सब विस्तारपूर्वक बतायें।”
( Devshayani Ekadashi ) कथा-सार
अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए किसी दूसरे का बुरा नहीं करना चाहिए। अपनी शक्ति से और भगवान पर पूरी श्रद्धा और आस्था रखकर सन्तों के कथनानुसार सत्कर्म करने से बड़े-बड़े कष्टों से सहज ही मुक्ति मिल जाती है।
8 – कामिका Ekadashi श्रावण कृष्ण
श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम कामिका है। इस Ekadashi की कथा सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है। ( Kamika Ekadashi ) के उपवास में शङ्ख, चक्र, गदाधारी भगवान विष्णु का पूजन होता है। जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उन्हें गंगा स्नान के फल से भी उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
( Kamika Ekadashi ) कथा-सार
भगवान श्रीहरि सर्वोपरि हैं। वे अपने भक्तों की निश्चल भक्ति से सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं। तुलसीजी भगवान विष्णु की प्रिया हैं। भगवान श्रीहरि हीरे-मोती, सोने-चाँदी से इतने प्रसन्न नहीं होते, जितनी प्रसन्नता उन्हें तुलसीदल के अर्पण करने पर होती है।
9 – पुत्रदा Ekadashi श्रावण शुक्ल
श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अनन्त यज्ञ का फल प्राप्त होता है। साथ ही पुत्र की इच्छा रखने वाले मनुष्य को विधानपूर्वक श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की ( Ekadashi ) का व्रत करना चाहिये। इस व्रत के प्रभाव से इहलोक में सुख और परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।”
( Shravana Putrada Ekadashi ) कथा-सार
पाप कर्म करते समय मनुष्य यह नहीं सोचता कि वह क्या कर रहा है, परन्तु शास्त्रों से विदित होता है कि मनुष्य का छोटे-से-छोटा पाप भी उसे भयंकर दुख भोगने को विवश कर देता है, अतः मनुष्य को पाप कर्म करने से डरना चाहिये, क्योंकि पाप नामक यह दैत्य जन्म-जन्मान्तर तक उसका पीछा नहीं छोड़ता। प्राणी को चाहिये कि सत्यव्रत का पालन करते हुए भगवान के प्रति पूरी श्रद्धा व भक्ति रखे और यह बात सदैव याद रखे कि किसी के दिल को दुखाने से बड़ा पाप दुनिया में कोई दूसरा नहीं है।
10 – अजा Ekadashi भाद्रपद कृष्ण
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा कहते हैं। इसका व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य इस दिन श्रद्धापूर्वक भगवान का पूजन करते हैं, उनके सभी प्राप नष्ट हो जाते हैं। इहलोक और परलोक में मदद करने वाली इस ( Ekadashi ) व्रत के समान संसार में दूसरा कोई व्रत नहीं है।
( Aja Ekadashi ) कथा-सार
मनुष्य को भगवान के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिये। जटिल परिस्थितियों में भी जो मनुष्य सत्य का मार्ग नहीं छोड़ते वे अन्त में स्वर्ग को जाते हैं। सत्य की परीक्षा जटिल परिस्थितियों में ही होती है।
11 – परिवर्तिनी Ekadashi भाद्रपद शुक्ल
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जयन्ती एकादशी भी कहते हैं। इस एकादशी की कथा के सुनने मात्र से ही सभी पापों का शमन हो जाता है और मनुष्य स्वर्ग का अधिकारी बन जाता है। इस जयन्ती Ekadashi की कथा से नीच पापियों का भी उद्धार हो जाता है।
( Parivartini Ekadashi ) कथा-सार
दान करने के उपरान्त मनुष्य को अभिमान नहीं करना चाहिये। राजा बलि ने अभिमान किया और पाताल को चला गया। इससे इस बात का भी बोध होता है कि अति हर कार्य की बुरी होती है।
12 – इंदिरा Ekadashi आश्विन कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा – “हे धनुर्धर! आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की Ekadashi का नाम इन्दिरा है। इस एकादशी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। नरक में गए हुए पितरों का उद्धार हो जाता है। हे अर्जुन! इस ( Ekadashi ) की कथा के श्रवण मात्र से ही मनुष्य को अनंत फल की प्राप्ति होती है।
( Indira Ekadashi ) कथा-सार
मनुष्य जो भी प्रण करे, उसे चाहिए कि वह उसको तन-मन-धन से पूरा करें। किसी भी कार्य का प्रण करके उसे तोड़ना नहीं चाहिए।
13 – पापांकुशा Ekadashi आश्विन शुक्ल
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की Ekadashi कल्याण करने वाली होती है। कहते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु का व्रत और पूजा आदि करने से जीवन में वैभव की प्राप्ति होती है। पुराणों में पापांकुशा एकादशी ( Papankusha Ekadashi )का व्रत करने वाले को अनेकों अश्वमेघ यज्ञों और सूर्य यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्त होने की बात कही गई है। पापांकुशा एकादशी का नाम पाप रुपी हाथी को पुण्यरुपी व्रत के अंकुश से भेदने के कारण इस व्रत का नाम पापांकुशा एकादशी पड़ा, इस दिन व्रत कथा पढ़ने का भी विशेष महत्व है, कहते हैं कथा का श्रवण कर ने मात्र से ही व्रत का फल मिलता है। इसलिए इस दिन व्रत कथा अवश्य करें, आइए जानते हैं।
( Papankusha Ekadashi ) कथा-सार
मनुष्य को पापों से बचने का दृढ़-संकल्प करना चाहिए। यूं तो भगवान विष्णु का ध्यान-स्मरण किसी भी रूप में सुखदायक और पापनाशक है, परंतु Ekadashi के दिन प्रभु का स्मरण-कीर्तन सभी क्लेशों व पापों का शमन कर देता है।
14 – रमा Ekadashi कार्तिक कृष्ण
कार्तिक कृष्ण पक्ष की Ekadashi का नाम रमा है। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है। कार्तिक मास में तो प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठने, स्नान करने और दानादि करने का विधान है। इसी कारण प्रात: उठकर केवल स्नान करने मात्र से ही मनुष्य को जहां कई हजार यज्ञ करने का फल मिलता है, वहीं इस मास में किए गए किसी भी व्रत का पुण्यफल हजारों गुणा अधिक है।
( Rama Ekadashi ) व्रत में भगवान विष्णु के पूर्णावतार भगवान जी के केशव रूप की विधिवत धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प एवं मौसम के फलों से पूजा की जाती है। वैसे तो किसी भी व्रत में श्रद्धा और आस्था का होना अति आवश्यक है परंतु भगवान सदा ही अपने भक्तों के पापों का नाश करने वाले हैं इसलिए कोई भी भक्त यदि अनायास ही कोई शुभ कर्म करता है तो प्रभु उससे भी प्रसन्न होकर उसके किए पापों से उसे मुक्त करके उसका उद्धार कर देते हैं।
( Rama Ekadashi ) कथा-सार
भगवान श्रीहरि बड़े दयालु और क्षमावान हैं। श्रद्धापूर्वक या विवश होकर भी यदि कोई उनका पूजन या ( Ekadashi ) व्रत करता है तो वह उसे भी उत्तम फल प्रदान करते हैं, परंतु मनुष्य को चाहिए कि वह भगवान का पूजन पूरी श्रद्धा से करे। सोभन अपनी पत्नी द्वारा श्रद्धापूर्वक किए गए Ekadashi व्रतों के कारण अपने राज्य को स्थिर कर सका। ऐसी सुकर्मा पत्नी भगवान श्रीहरि की कृपा से ही प्राप्त हो सकती है।
15 – देवउठनी Ekadashi कार्तिक शुक्ल
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष मे तुलसी विवाह के दिन आने वाली इस ( Ekadashi ) को विष्णु प्रबोधिनी एकादशी, देव-प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान, देव उथव एकादशी, देवउठनी एकादशी, देवोत्थान, कार्तिक शुक्ल Ekadashi तथा प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है, आषाढ शुक्ल एकादशी को देव-शयन हो जाने के बाद से प्रारम्भ हुए चातुर्मास का समापन कार्तिक शुक्ल ( Ekadashi ) के दिन देवोत्थान-उत्सव होने पर होता है। इस दिन वैष्णव ही नहीं, स्मार्त श्रद्धालु भी बडी आस्था के साथ व्रत करते हैं।
( Dev Uthani Ekadashi ) कथा-सार
वेदाध्ययन, तपस्या व त्याग की दृष्टि से चातुर्मास्य का नियम अति महत्त्वपूर्ण है। भगवान श्रीहरि की भक्ति में लीन होने के लिए यह समय अति उत्तम होता है। गृहस्थ व्यक्ति भी चातुर्मास्य में भगवान विष्णु की भक्ति का पूरा लाभ उठा सकते हैं।
16 – उत्पन्ना Ekadashi मार्गशीर्ष कृष्ण
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष मे आने वाली इस ( Ekadashi ) को Utpanna Ekadashi कहा जाता है। यह व्रत शंखोद्धार तीर्थ में स्नान करके भगवान के दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है, उसके बराबर पुण्य मिलता है। व्रत करने वाले भक्त को चोर, पाखंडी, परस्त्रीगामी, निंदक, मिथ्याभाषी तथा किसी भी प्रकार के पापी से बात नहीं करनी चाहिए।
( Utpanna Ekadashi ) कथा-सार
Ekadashi भगवान विष्णु की साक्षात शक्ति है, जिस शक्ति ने उस असुर का वध किया है, जिसे भगवान भी जीत पाने में असमर्थ थे, उस शक्ति के आगे मनुष्य के पाप रुपी असुर भला कैसे टिक सकते हैं? जिस शक्ति ने देवताओं के कष्ट को हरकर उन्हें सुख दिया, वह प्राणिमात्र को क्या नहीं दे सकती- सुख, समृद्धि, शान्ति और मोक्ष समस्त सुख सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।
17 – मोक्षदा Ekadashi मार्गशीर्ष शुक्ल
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की Ekadashi को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में मोक्षदा एकादशी का विशेष महत्व है। कहते हैं कि इस दिन व्रत और पूजा आदि करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। और इस जन्म में सभी पापों का नाश होता है।
( Mokshada Ekadashi ) कथा-सार
यह पिता के प्रति भक्ति और दूसरों के लिए पुण्य अर्पित करने की श्रेष्ठ और पवित्र कथा है। इसका उपवास केवल उपवास करने वाले मनुष्य का ही नहीं, अपितु उसके पितरों का भी भला करता है, अपने किसी सगे-सहोदर, मित्र-बंधु को भी इस उपवास का फल अर्पण करने से उसके भी पापों व क्लेशों का नाश हो जाता है।
पौष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम ‘सफला‘ है। इस एकादशी के आराध्य देव नारायण हैं। इस एकादशी के दिन श्रीमन नारायणजी की विधि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजा करनी चाहिए। ( Ekadashi ) जिस तरह नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरूड़ ग्रहों में सूर्य-चन्द्र, यज्ञों में अश्वमेध और देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार व्रतों में Ekadashi Vrat श्रेष्ठ है। एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति भगवान श्रीहरि को अति प्रिय हैं।
( Saphala Ekadashi ) कथा-सार
यह सफला एकादशी की कथा हमें भगवान के अति कृपालु होने का भान कराती है। यदि कोई मनुष्य अज्ञानवश भी प्रभु का स्मरण करे तो उसे पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। यदि मनुष्य निश्छल भाव से अपने पापों की क्षमा मांगे तो भगवान उसके बड़े-से-बड़े पापों को भी क्षमा कर देते हैं। लुम्पक जैसा महापापी भी भगवान श्रीहरि की कृपा से वैकुंठ का अधिकारी बना।
19 – पुत्रदा Ekadashi पौष शुक्ल
अर्जुन के प्रश्न पर श्रीकृष्ण ने कहा- “हे अर्जुन! पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम ( Putrada ) है। इसका पूजन पूर्व में बताई गई विधि अनुसार ही करना चाहिए। इस उपवास में भगवान श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए। संसार में पुत्रदा एकादशी ( Putrada Ekadashi ) उपवास के समान अन्य दूसरा व्रत नहीं है। इसके पुण्य से प्राणी तपस्वी, विद्वान और धनवान बनता है। इस Ekadashi से सम्बंधित जो कथा प्रचलित है, उसे मैं तुम्हें सुनाता हूँ,
( Pausha Putrada Ekadashi ) कथा-सार
पुत्र का न होना बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है, उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण है पुत्र का कुपुत्र होना, अतः सर्वगुण सम्पन्न और सुपुत्र पाना बड़ा ही दुर्लभ है। ऐसा पुत्र उन्हें ही प्राप्त होता है, जिन्हें साधुजनों का आशीर्वाद प्राप्त हो तथा जिनके मन में भगवान की भक्ति हो। इस कलियुग में सुयोग्य पुत्र प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन ( Putrada Ekadashi ) का व्रत ही है।
20 – षटतिला Ekadashi माघ कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से एकादशियों का माहात्म्य सुनकर श्रद्धापूर्वक उन्हें प्रणाम करते हुए अर्जुन ने कहा- “हे केशव! आपके श्रीमुख से एकादशियों की कथाएं सुनकर मुझे असीम आनंद की प्राप्ति हुई है। हे मधुसूदन! कृपा कर अन्य एकादशियों का माहात्म्य सुनाने की भी अनुकम्पा करें।”
( Shattila Ekadashi ) कथा-सार
इस उपवास को करने से जहां हमें शारीरिक पवित्रता और निरोगता प्राप्त होती है, वहीं अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में बढ़ोत्तरी होती है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि मनुष्य जो-जो और जैसा दान करता है, शरीर त्यागने के बाद उसे फल भी वैसा ही प्राप्त होता है, अतः धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ हमें दान आदि अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों में वर्णित है कि बिना दान किए कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं होता।
माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। इस एकादशी के उपवास से मनुष्य भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनि से छूट जाता है, अतः इस Ekadashi के उपवास को विधि अनुसार करना चाहिए। अब मैं तुमसे जया एकादशी के व्रत की कथा कहता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो।
( Jaya Ekadashi ) कथा-सार
संगीत देवी सरस्वती का एक अलौकिक वरदान है, यह एक साधना है, एक विद्या है। इसमें पवित्रता आवश्यक है। फिर जिस सभा में अपने से बड़े गुरुजन आदि उपस्थित हों, वहां प्राणी को संयम और मर्यादा को बनाए रखना चाहिए, ताकि गुरुजनों का अपमान न हो, उनका सम्मान बना रहे। गुरुजनों का अपमान करने वाला मनुष्य घोर नरक का भागी है।
22 – विजया Ekadashi फाल्गुन कृष्ण
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की Ekadashi का नाम विजया है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजयश्री मिलती है। इस ( Vijaya Ekadashi ) के माहात्म्य के श्रवण व पठन से सभी पापों का अंत हो जाता है। एक बार देवर्षि नारद ने जगत पिता ब्रह्माजी से कहा- ‘हे ब्रह्माजी! आप मुझे फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की विजया ( Ekadashi ) का व्रत तथा उसकी विधि बताने की कृपा करें।’
( Vijaya Ekadashi ) कथा-सार
भगवान विष्णु का किसी भी रूप में पूजन मानव मात्र की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करता है। श्रीराम हालांकि स्वयं विष्णु के अवतार थे, अपितु अपनी लीलाओं के चलते प्राणियों को सद्मार्ग दिखाने के लिए उन्होंने विष्णु भगवान के निमित्त इस व्रत को किया। विजय की इच्छा रखने वाला इस उपवास को करके अनंत फल का भागी बन सकता है।
23 – आमलकी Ekadashi फाल्गुन शुक्ल
अट्ठासी हजार ऋषियों को सम्बोधित करते हुए सूतजी ने कहा – “हे विप्रो! प्राचीन काल की बात है। महान राजा मान्धाता ने वशिष्ठजी से पूछा- ‘हे वशिष्ठजी! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो ऐसे व्रत का विधान बताने की कृपा करें, जिससे मेरा कल्याण हो।’
महर्षि वशिष्ठ ने कहा – हे राजन! Amalaki Ekadashi Vrat फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में होता है। इस व्रत के फल के सभी पाप समूल नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत का पुण्य एक हजार गौदान के फल के बराबर है। Amalaki (आंवले) की महत्ता उसके गुणों के अतिरिक्त इस बात में भी है कि इसकी उत्पत्ति भगवान विष्णु के श्रीमुख से हुई है।
( Amalaki Ekadashi ) कथा-सार
भगवान श्रीहरि की शक्ति हमारे सभी कष्टों को हरती है। यह मनुष्य की ही नहीं, अपितु देवताओं की रक्षा में भी पूर्णतया समर्थ है। इसी शक्ति के बल से भगवान विष्णु ने मधु-कैटभ नाम के राक्षसों का संहार किया था। इसी शक्ति से उत्पन्ना एकादशी बनकर मुर नामक असुर का वध करके देवताओं के कष्ट को हरकर उन्हें सुखी किया था।
24 – पापमोचिनी Ekadashi चैत्र कृष्ण
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की ( Ekadashi ) का नाम ( Papmochani Ekadashi ) है। उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं।
( Papmochani Ekadashi ) कथा-सार
इस कथा से स्पष्ट विदित है कि शारीरिक आकर्षण ज्यादा समय तक नहीं रहता। शारीरिक सौन्दर्य के लोभ में पड़कर मेधावी मुनि अपने तप संकल्प को भूल गए। यह भयंकर पाप माना जाता है, परन्तु भगवान श्रीहरि की Papmochani शक्ति इस भयंकर पाप कर्म से भी सहज ही मुक्ति दिलाने में सक्षम है। जो मनुष्य सद्कर्मों का संकल्प करने के बाद में लोभ-लालच और भोग-विलास के वशीभूत होकर अपने संकल्प को भूल जाते हैं, वे घोर नरक के भागी बनते हैं।
25 – पद्मिनी Ekadashi अधिक मास शुक्ल
एकादशियों का श्रवण करते हुए अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा- “हे प्रभु! अब आप अधिक (लौंद) मास की शुक्ल पक्ष की Ekadashi के सम्बंध में बताएं इस ( Ekadashi ) का नाम क्या है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसमें किस देवता का पूजन किया जाता है और इसके व्रत से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपा कर यह सब विस्तारपूर्वक बताएं।”
( Padmini Ekadashi ) कथा-सार
ईश्वर सर्वतः हैं। वे दुष्प्राप्य वस्तुओं को भी देने में समर्थ हैं, परंतु प्रभु को प्रसन्न करके अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त करने का मार्ग मनुष्य को जानना चाहिए। पद्मिनी ( Ekadashi ) प्रभु की प्रिय तिथि है, जप-तप से भी ज्यादा प्रभावशाली इसका व्रत मनुष्य को दुष्प्राप्य वस्तुओं को भी प्राप्त करा देता है।
26 – परमा Ekadashi अधिक मास कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे अर्जुन! जो मनुष्य ( Parama Ekadashi ) का व्रत करता है, उसे सभी तीर्थों व यज्ञों आदि का फल प्राप्त होता है। जिस प्रकार संसार में दो पैरों वालों में ब्राह्मण, चार पैरों वालों में गौ, देवताओं में देवेंद्र श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार मासों में अधिक (लौंद) मास उत्तम है।
इस माह में पंचरात्रि अत्यंत पुण्य देने वाली होती है। इस माह में पद्मिनी और Parama Ekadashi भी श्रेष्ठ है। इनके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, अतः दरिद्र मनुष्य को एक व्रत जरूर करना चाहिए। जो मनुष्य अधिक मास में स्नान तथा ( Ekadashi ) व्रत नहीं करते, उन्हें आत्महत्या करने का पाप लगता है। यह मनुष्य योनि बड़े पुण्यों से मिलती है, इसलिए मनुष्य को एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
( Parama Ekadashi ) कथा-सार
ब्राह्मणों, ऋषि-मुनियों व सज्जन पुरुषों का आदर करने वाले मनुष्यों पर प्रभु अवश्य ही कृपा करते हैं। श्रीलक्ष्मी की प्राप्ति मात्र भाग-दौड़ से नहीं होती, अपितु इसके लिए यत्नपूर्वक परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। यत्नपूर्वक किया गया परिश्रम भगवान की कृपा से अवश्य ही पूर्ण होता है।