Mokshada Ekadashi – मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में मोक्षदा एकादशी का विशेष महत्व है। कहते हैं कि इस दिन व्रत और पूजा आदि करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। और इस जन्म में सभी पापों का नाश होता है।
मान्यता है कि आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने कुरूक्षेत्र में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। कहते हैं कि मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत के समय व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने समस्ता पापों से छुटकारा मिलता है और पापों से मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं मोक्षदा एकादशी की कथा के बारे में।
Mokshada Ekadashi Vrat Katha —
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में गोकुल में वैखानस नाम का राजा था। एक रात उन्होंने सपने में अपने पिता को मृत्यु के बाद नरक की यातनाएं झेलते देखा. अपने पिता की ऐसी हालत देखकर राजा बहुत दुखी हुआ। अगले दिन उसने राज पुरोहित को बुलाया और अपने पिता की मुक्ति का मार्ग पूछा इस पर पुरोहित ने कहा की समस्या का समाधान त्रिकालदर्शी महात्मा जिनका नाम पर्वत है वही कर सकते हैं।
इसके बाद राजा पर्वत महात्मा के आश्रम गए। वहां राजा ने पर्वत महात्मा से अपने पिता की मुक्ति का मार्ग पूछा, इस पर महात्मा ने कहा कि उनके पिता ने पिछले जन्म में एक पाप किया था। इस कारण वे नर्क की यातनाएं भोग रहे हैं। इसके बाद राजा ने इस पाप से मुक्ति का रास्ता पूछा, इस पर महात्मा ने मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी का विधि पूर्वक व्रत और पूजन करने को कहा।
साथ ही कहा कि इस व्रत से आपके पिता को मुक्ति मिलेगी. इसके बाद राजा ने मोक्षदा एकादशी का व्रत और पूजन किया, इस व्रत और पूजन के पुण्य प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिली और मुक्त आत्मा ने राजा को आशीर्वाद दिया।
मोक्षदा एकादशी का महत्व —
मोक्षदा एकादशी का अर्थ है मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी। इस एकादशी का उपवास करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अजुर्न को गीता का उपदेश दिया था,
इसलिए मोक्षदा एकादशी का महत्व और बढ़ जाता है। जितना पुण्य हजार वर्षों की तपस्या से मिलता है, उतना ही फल सच्चे मन से इस व्रत को करने से मिलता है। इस दिन नारायण कवच या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत ही उत्तम फलदायी माना गया है।
पूजा विधि —
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें , घर के मंदिर को साफ करें, और मंदिर और आसपास के क्षेत्र को गंगाजल से पवित्र करें। मंदिर में सभी देवताओं को स्नान कराएं। और स्वच्छ वस्त्र धारण करें, भगवान के सामने दीपक जलाएं।
भगवान विष्णु को फूल और तुलसी चढ़ाएं, हो सके तो इस दिन व्रत रखें, श्री हरि को भोग लगाएं।
ध्यान रखें कि भगवान को केवल सात्विक चीजें ही अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि तुलसी के बिना भगवान विष्णु भोग स्वीकार नहीं करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए, पूजा के बाद आरती करें और भगवान से प्रर्थना करें।
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