Narak Chaturdashi Katha – कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर मनाई जाती है नरक चतुर्दशी, जिसे नरक चौदस, रूप चौदस, छोटी दीवाली व काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। यूं तो यह दिन विशेष रूप से यम की पूजा के लिए होता है लेकिन इस दिन मां काली की भी विशेष पूजा का भी विधान है।
नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले, रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं।
Narak Chaturdashi Katha
प्रथम कथा —
एक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध किया था नरकासुर एक दैत्य था, जिसका श्रीकृष्ण ने अपनी तीसरी पत्नी सत्यभामा की सहायता से संहार किया था। श्रीकृष्ण ने उसका संहार कर 16 हजार लड़कियों को कैद से आजाद करवाया था। तत्पश्चात उन लड़कियों को उनके माता पिता के पास जाने का निवेदन किया , जिसे उन्होनें अस्विकार कर कृष्ण से विवाह का प्रस्ताव रखा ,बाद में यही कृष्ण की सोलह हजार पत्नियां ऐवं आठ मुख्य पटरानियां मिलाकर सोलह हजार आठ रानियां कहलायी ।नरकासुर के वध के कारण इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाते हैं ।
उत्तर भारतीय महिलायें इस दिन ” सूप ” को प्रात: काल बजाकर ‘इसर आवै दरिद्दर जावै ‘ कहते हुऐ ‘सूप’ को जला देते हैं । इस दिन को कहीं कहीं ” हनुमान जयंती ” के रूप में भी मनाते हैं ।
एक दूसरी कथा भी प्रचलित है। —
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए।
यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।
पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है। दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है।
तब ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया।
इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उपरोक्त कारणों से नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली के नाम से जाना जाता है। और इसके बाद
क्रमशः दीपावली, गोधन पूजा और भाई दूज मनायी जाती है।
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