Navratri / माँ दुर्गा के नौ रूप
नवदुर्गा के 9 रूप बताते हैं एक स्त्री का संपूर्ण जीवनचक्र
हमारी संस्कृति नारी के अंदर की संस्कृति है। मातृशक्ति की आराधना के लिए हमें वर्ष में 9 दिन विशेष दिए गए हैं। यह नारी शक्ति के आदर और सम्मान का उत्सव है। यह उत्सव नारी को अपने स्वाभिमान व अपनी शक्ति का स्मरण दिलाता है, साथ ही समाज के अन्य पुरोधाओं को भी नारी शक्ति का सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है।
नारी के प्रति संवेदनाओं में विस्तार होना चाहिए। जिस तरह हम नवरात्रि में मातृशक्ति के अनेक स्वरूपों का पूजन करते हैं, उनका स्मरण करते हैं, उसी प्रकार नारी के गुणों का हम सम्मान करें। हमारे घर में रहने वाली माता, पत्नी, बेटी, बहन- इन सब में हम गुण ढूंढें।
एक नारी में जितनी इच्छाशक्ति दृढ़ता के साथ होती है, वह पुरुष में शायद ही होती है। दोहरी भूमिका लिए वह दोनों ही स्थितियों का बेहतर निर्वाह करती है। कन्या का विवाह के पश्चात अहंकार भाव खत्म हो जाता है। पति के नाम से वह जानी लजाती है। पति के कार्यों को व पति के परिवार का ध्यान, पति के परिवार में यथोचित सम्मान देना, अपनी भावनाओं को एक तरफ रखकर त्याग, समर्पण से कार्य करना उसका उद्देश्य होता है।
स्त्री का जीवन परिवार के लिए एक तपस्या, एक तप है, जो निष्काम भाव से किया जाता है। प्रत्येक घर में संघर्षों व अग्नि में तपने वाले को शीतलता प्रदान करने वाली नारी होती है। वह अपने ज्ञान, संघर्ष और कर्म से परिवार के सदस्यों को कार्यों के लिए प्रेरित करती रहती है।
नारी का सबसे बड़ा जो गुण उसे भगवान ने प्रदान किया है वह है मातृत्व। एक मां अपने बच्चे के लालन-पालन और उसके अस्तित्व निर्माण में अपने पूरे जीवन की आहुति देती है। मातृत्व से ही वह अपनी संतानों में संस्कारों का बीजारोपण करती है। यह मातृत्व भाव ही व्यक्ति के अंदर पहुंचाकर दया, करुणा, प्रेम आदि गुणों को जन्म देती है। नारी के आभामंडल से घर पवित्र होता है। नारी की ऊर्जा से ही संपूर्ण परिवार ऊर्जावान होता है।
भाई, बहन के प्यार में ऊर्जा, पति-पत्नी के प्रेम में ऊर्जा तथा एक पुत्र अपनी मां के व्यवहार में ऊर्जा प्राप्त कर जीवन जीने का संकल्प करता है। घर की चहारदीवारी में प्रकाश की तरंगें उसके कारण व्याप्त होती हैं। जिस घर में नारी नहीं होती वह घर निस्तेज प्रतीत होता है।
भारतीय नारी पुरातन काल में ऋषियां हुआ करती थीं। ऐसी अनेक नारियां हैं जिनके ज्ञान- तपस्या से तीनों लोक प्रभावित होते थे। ऋषि पत्नियां भी ऋषियों के साथ-साथ तप में लीन रहती थीं। वह सतयुग था उसके पश्चात कलयुग में भी नारी शक्तियों ने संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी वीरता दिखाई। अनेक वीरांगनाएं इस देश की माटी पर जन्मी हैं। उनकी प्रेरणा और संकल्पों से परिवार और समाज को समय-समय पर ऊर्जा प्राप्त हुई है।
आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनीतिक सभी स्तरों पर नारी शक्ति द्वारा आज भी शंखनाद किया जा रहा है। बड़े-बड़े पदों पर नारियां अपनी विद्वता से देश को दिशा दे रही हैं। यह नवरात्रि पर्व उनके सम्मान का पर्व है। शक्ति ही हमें मुक्ति, भक्ति दोनों प्रदान करती है। हम उपासना के साथ नारियों के सम्मान का संकल्प लें।
नारी शक्ति के नौ रूप – Navratri
1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या “शैलपुत्री” स्वरूप है।
2. कौमार्य अवस्था तक “ब्रह्मचारिणी” का रूप है।
3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह “चंद्रघंटा” समान है।
4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह “कूष्मांडा” स्वरूप में है।
5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री “स्कन्दमाता” हो जाती है।
6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री “कात्यायनी” रूप है।
7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह “कालरात्रि” जैसी है।
8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से “महागौरी” हो जाती है।
9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली “सिद्धिदात्री” हो जाती है।