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MAHI SINGH > Blog > VRAT KATHA > Ekadashi Vrat Katha > Nirjala Ekadashi : निर्जला एकादशी व्रत, करने से मिलती है सभी एकादशी का फल, जानिए क्या है व्रत कथा
व्रत कथाEkadashi Vrat KathaVRAT KATHAएकादशी व्रत कथा

Nirjala Ekadashi : निर्जला एकादशी व्रत, करने से मिलती है सभी एकादशी का फल, जानिए क्या है व्रत कथा

MAHI SINGH
Last updated: February 23, 2025 8:30 pm
By MAHI SINGH
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7 Min Read
Nirjala Ekadashi
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( Nirjala Ekadashi – सभी एकादशी का फल )

निर्जला एकादशी व्रत कथा – Nirjala Ekadashi

Nirjala Ekadashi – शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषि-मुनि बड़ी श्रद्धा से इन एकादशियों की कल्याणकारी व पापनाशक रोचक कथाएँ सुनकर आनन्दमग्न हो रहे थे। अब सबने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की प्रार्थना की।

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Nirjala Ekadashi – कथा –

तब सूतजी ने कहा- महर्षि व्यास से एक बार भीमसेन ने कहा – “हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुन्ति, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि एकादशी के दिन व्रत करते हैं और मुझे भी एकादशी के दिन अन्न खाने को मना करते हैं। मैं उनसे कहता हूँ कि भाई, मैं भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा कर सकता हूँ और दान दे सकता हूँ, किन्तु मैं भूखा नहीं रह सकता।”

इस पर महर्षि व्यास ने कहा – “हे भीमसेन! वे सही कहते हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि एकादशी के दिन अन्न नहीं खाना चाहिये। यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्येक माह की दोनों एकादशियों को अन्न नहीं खाया करो।

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महर्षि व्यास की बात सुन भीमसेन ने कहा – “हे पितामह, मैं आपसे पहले ही कह चुका हूँ कि मैं एक दिन तो क्या एक समय भी भोजन किये बिना नहीं रह सकता, फिर मेरे लिये पूरे दिन का उपवास करना क्या सम्भव है? मेरे पेट में अग्नि का वास है, जो ज्यादा अन्न खाने पर ही शान्त होती है। यदि मैं प्रयत्न करूँ तो वर्ष में एक एकादशी का व्रत अवश्य कर सकता हूँ, अतः आप मुझे कोई एक ऐसा व्रत बतलाइये, जिसके करने से मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।”

Nirjala Ekadashi vrat भीमसेन की बात सुन व्यासजी ने कहा – “हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषि और महर्षियों ने बहुत-से शास्त्र आदि बनाये हैं। यदि कलियुग में मनुष्य उनका आचरण करे तो अवश्य ही मुक्ति को प्राप्त होता है। उनमें धन बहुत कम खर्च होता है। उनमें से जो पुराणों का सार है, वह यह है कि मनुष्य को दोनों पक्षों की एकादशियों का व्रत करना चाहिये। इससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।”

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महर्षि व्यास ने कहा – “हे वायु पुत्र! वृषभ संक्रान्ति और मिथुन संक्रान्ति के बीच में ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिये। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन करते समय यदि मुख में जल चला जाये तो इसका कोई दोष नहीं है, किन्तु आचमन में ६ माशे जल से अधिक जल नहीं लेना चाहिये। इस आचमन से शरीर की शुद्धि हो जाती है। आचमन में ६ माशे से अधिक जल मद्यपान के समान है।

इस दिन भोजन नहीं करना चाहिये। भोजन करने से व्रत का नाश हो जाता है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक यदि मनुष्य जलपान न करे तो उससे बारह एकादशियों के फल की प्राप्ति होती है। द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिये। इसके पश्चात भूखे ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिये। तत्पश्चात स्वयं भोजन करना चाहिये।

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हे भीमसेन! स्वयं भगवान ने मुझसे कहा था कि इस एकादशी का पुण्य सभी तीर्थों और दान के बराबर है। एक दिन निर्जला रहने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें मृत्यु के समय भयानक यमदूत नहीं दिखाई देते, बल्कि भगवान श्रीहरि के दूत स्वर्ग से आकर उन्हें पुष्पक विमान पर बैठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। संसार में सबसे उत्तम निर्जला एकादशी का व्रत है।

अतः यत्नपूर्वक इस एकादशी का निर्जल व्रत करना चाहिये। इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, इस मन्त्र का उच्चारण करना चाहिये। इस दिन गौदान करना चाहिये। इस एकादशी को भीमसेनी या पाण्डव एकादशी भी कहते हैं। निर्जल व्रत करने से पहले भगवान का पूजन करना चाहिये और उनसे प्रार्थना करनी चाहिये कि हे प्रभु! आज मैं निर्जल व्रत करता हूँ, इसके दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा। मेरे सब पाप नष्ट हो जाएं। इस दिन जल से भरा हुआ घड़ा वस्त्र आदि से ढककर स्वर्ण सहित किसी सुपात्र को दान करना चाहिये। इस व्रत के अन्तराल में जो मनुष्य स्नान, तप आदि करते हैं, उन्हें करोड़ पल स्वर्णदान का फल प्राप्त होता है।

जो मनुष्य इस दिन यज्ञ, होम आदि करते हैं, उसके फल का तो वर्णन भी नहीं किया जा सकता। इस निर्जला एकादशी के व्रत के पुण्य से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, उनको चाण्डाल समझना चाहिये। वे अन्त में नरक में जाते हैं। ब्रह्म हत्यारे, मद्यमान करने वाले, चोरी करने वाले, गुरु से ईर्ष्या करने वाले, झूठ बोलने वाले भी इस व्रत को करने से स्वर्ग के भागी बन जाते हैं।

हे अर्जुन! जो पुरुष या स्त्री इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके निम्नलिखित कर्म हैं, उन्हें सर्वप्रथम विष्णु भगवान का पूजन करना चाहिये। तदुपरान्त गौदान करना चाहिये। इस दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिये। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, छत्र आदि का दान करना चाहिये। जो मनुष्य इस कथा का प्रेमपूर्वक श्रवण करते हैं तथा पठन करते हैं वे भी स्वर्ग के अधिकारी हो जाते हैं।”

Nirjala Ekadashi – कथा-सार –

अपनी कमजोरियों को अपने गुरुजनों व परिवार के बड़ों से कदापि नहीं छुपाना चाहिये। उन पर विश्वास रखते हुए भक्त को चाहिये कि वह अपना कष्ट उन्हें बताये, ताकि वे उसका कोई उचित उपाय कर सकें। उपाय पर श्रद्धा और विश्वासपूर्वक अमल करना चाहिये।

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