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MAHI SINGH > Blog > VRAT KATHA > Ekadashi Vrat Katha > Papankusha Ekadashi Vrat Katha : पापांकुशा एकादशी व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति, सुनें व्रत कथा।
Ekadashi Vrat KathaVRAT KATHAव्रत कथा

Papankusha Ekadashi Vrat Katha : पापांकुशा एकादशी व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति, सुनें व्रत कथा।

MAHI SINGH
Last updated: November 9, 2023 9:42 am
By MAHI SINGH
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5 Min Read
Papankusha Ekadashi Vrat Katha : पापांकुशा एकादशी व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति, सुनें व्रत कथा।
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अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी कल्याण करने वाली होती है। कहते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु का व्रत और पूजा आदि करने से जीवन में वैभव की प्राप्ति होती है। पुराणों में पापांकुशा एकादशी का व्रत करने वाले को अनेकों अश्वमेघ यज्ञों और सूर्य यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्त होने की बात कही गई है। पापांकुशा एकादशी का नाम पाप रुपी हाथी को पुण्यरुपी व्रत के अंकुश से भेदने के कारण इस व्रत का नाम पापांकुशा एकादशी पड़ा, इस दिन व्रत कथा पढ़ने का भी विशेष महत्व है, कहते हैं कथा का श्रवण कर ने मात्र से ही व्रत का फल मिलता है। इसलिए इस दिन व्रत कथा अवश्य करें, आइए जानते हैं। पापांकुशा व्रत कथा के बारे में।

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पापांकुशा एकादशी व्रत कथा ( Papankusha Ekadashi Vrat Katha ) —

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अर्जुन ने कहा – “हे जगदीश्वर! आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा इस व्रत के करने से कौन से फलों की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।

” भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- “हे कुंतीनंदन! आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा है। इसका व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा व्रत करने वाला अक्षय पुण्य का भागी होता है। इस एकादशी के दिन इच्छित फल की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। इस पूजन के द्वारा मनुष्य को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। हे अर्जुन! जो मनुष्य कठिन तपस्याओं के द्वारा फल की प्राप्ति करते हैं, वह फल इस एकादशी के दिन क्षीर-सागर में शेषनाग पर शयन करने वाले भगवान विष्णु को नमस्कार कर देने से मिल जाता है और मनुष्य को यम के दुख नहीं भोगने पड़ते। हे पार्थ! जो विष्णुभक्त शिवजी की निंदा करते हैं अथवा जो शिवभक्त विष्णु भगवान की निंदा करते हैं, वे नरक को जाते हैं।

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हजार अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञ का फल इस एकादशी के फल के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं होता अर्थात इस एकादशी व्रत के समान संसार में अन्य कोई व्रत नहीं है। इस एकादशी के समान विश्व में पवित्र तिथि नहीं है। जो मनुष्य एकादशी व्रत नहीं करते हैं, वे सदा पापों से घिरे रहते हैं। जो मनुष्य किसी कारणवश केवल इस एकादशी का भी उपवास करता है तो उसे यम के दर्शन नहीं होते। इस एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य को निरोगी काया तथा सुंदर नारी और धन-धान्य की प्राप्ति होती है और अंत में वह स्वर्ग को जाता है। जो मनुष्य इस एकादशी के व्रत में रात्रि जागरण करते हैं, उन्हें सहज ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

इस एकादशी के व्रत करने वाले मनुष्यों के मातृपक्ष के दस पुरुष, पितृपक्ष के दस पुरुष तथा स्त्री पक्ष के दस पुरुष, भगवान विष्णु का रूप धरकर व सुंदर आभूषणों से परिपूर्ण होकर विष्णु लोक को जाते हैं। जो मनुष्य आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पापांकुशा एकादशी का विधानपूर्वक उपवास करते हैं, उन्हें विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य एकादशी के दिन भूमि, गौ, अन्न, जल खड़ाऊं, वस्त्र, छत्र आदि का दान करते हैं, उन्हें यम के दर्शन नहीं होते। दरिद्र मनुष्य को भी यथाशक्ति कुछ दान देकर कुछ पुण्य अवश्य ही अर्जित करना चाहिए। जो मनुष्य तालाब, बगीचा, धर्मशाला, प्याऊ आदि बनवाते हैं, उन्हें नरक के कष्ट नहीं भोगने पड़ते। वह मनुष्य इस लोक में निरोगी, दीर्घायु वाले, पुत्र तथा धन-धान्य से परिपूर्ण होकर सुख भोगते हैं तथा अंत में स्वर्ग लोक को जाते हैं। भगवान श्रीहरि की कृपा से उनकी दुर्गति नहीं होती।”

कथा-सार 

मनुष्य को पापों से बचने का दृढ़-संकल्प करना चाहिए। यूं तो भगवान विष्णु का ध्यान-स्मरण किसी भी रूप में सुखदायक और पापनाशक है, परंतु एकादशी के दिन प्रभु का स्मरण-कीर्तन सभी क्लेशों व पापों का शमन कर देता है।

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