तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास –
अब तक के लेख में आपने पढ़ा श्री वेंकटेश्वर बालाजी का संपूर्ण जीवन चरित्र।
अब जानेंगे श्रीवेंकटेश्वर बालाजी के,
15 . प्राचीन मुख्य तीर्थः
1. पांडव तीर्थ:-
कुरुक्षेत्र महा संग्राम की परिसमाप्त के बाद पांडवों ने अपनी ब्रह्महत्या महापाप निवारन के लिए इस तीर्थ में नहाकर क्षेत्रपाल की पूजा करने के बाद श्रीनिवास के दर्शन किए। पांडवों के नहाने से पांडव तीर्थ नाम से पुकारा गया। यह तीर्थ मन्दिर के उत्तर में है।
2.सनक सनन्द तीर्थ:-
सनक सनन्दन यही तपस्या करके मोक्ष पाया था। इस तीर्थ में मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष द्वादशी के दिन स्नान करने से मोक्ष मिलेगा। यह तीर्थ पापविनाश तीर्थ के उत्तर भाग में एक मील दूर पर है।
3. कुमाराधारा तीर्थ :-
माघ मास के पूनम के दिन इस तीर्थ में स्नान करने से संतान प्राप्ति होगी और सभी कार्य की सिद्धि होगी। यह तीर्थ देवालय से छः मील दूर पर है।
4. तुम्बुरु तीर्थ:-
इस तीर्थ में तुम्बुरु और नारद ने तपस्या करके मोक्ष पाया था। इसलिए इस तीर्थ में फाल्गुन शुद्ध पूनम के दिन स्नान किया तो सभी पाप परिहार होंगे। यह तीर्थ देवालय से दस मील दूर पर हैं। फाल्गुन शुद्ध पूनम के दिन इसके जाने की राह में मन्दिर के पुजारी यात्रियों को पानी तीर्थ इत्यादि देते हैं।
5. नाग तीर्थ:-
इस तीर्थ में स्नान करने से कन्याओं को सलक्षण पति मिलेगा। यह तीर्थ आलय से एक मील दूर पर है।
6. चक्र तीर्थ:-
महाभारत युद्ध की समाप्ति होने के बाद श्रीहरि के सुदर्शन चक्र को पंच महापातक लग गए थे। यहाँ सुदर्शन – चक्र को स्नान करवाया। यहाँ स्नान करने से ब्रह्महत्या-पाप, शिशुहत्या – पाप दूर होकर पवित्र होते है। यह श्रीहरि के मन्दिर से दो किलो मीटर दूर पर है।
7. जाबाली तीर्थः-
इस तीर्थ में जाबालि नामक महामुनि ने तपस्या की थी। यहाँ स्नान करने से भूत-प्रेत पिशाच दूर होंगे और मन की इच्छा पूरी होगी। यहीं पर हनुमान का मन्दिर भी है। यह मन्दिर हाथीराम मठाधिपतियों के अधीन मे है। वे ही हनुमान को नित्य नैवेद्य रखते है।
8. बाल तीर्थ:-
यह तीर्थ नाग तीर्थ से दो सौं गन की दूर पर है। यहाँ स्नान करने से बूढे भी युवक हो जाएँगे। सृष्टि के प्रतिकूल होने के कारण इस तीर्थ को बंद कर दिया और तीर्थ का पानी नहीं दीखता।
9. वैकुंठ तीर्थ :-
इस तीर्थ में स्नान करनेवालों को वैकुंठ प्राप्ति होगी। यह तीर्थ आलय की पूर्व दिशा में एक किलोमीटर दूर पर है। नगर की प्रजा यहाँ कभी- कभी बैकुण्ठ समाराधना करते रहते हैं।
10. शेष तीर्थः-
इस तीर्थ में स्नान करनेवालों को दूसरा जन्म नही है। इस तीर्थ की पहुँचना बडा खतरनाक है। पहाड और जलप्रपातों को पार करना मुश्किल है। यहाँ का विशेष यह है कि आदिशेष शिला रूप में दीख पडता है। यहाँ और कुछ विशेष यह है कि नाग (सर्प) चलते फिरते है। यह तीर्थ मन्दिर से दस किलो मीटर दूर पर है।
11. सीता तीर्थ:-
इस तीर्थ में सीता देवी ने लवकुश को मिर्च पीसकर पिलायी थी। पीसने से घटा हुआ पत्थर को आज भी देख सकते हैं। यहीं एक बिल हैं। बिल का पानी बाहर नहीं दीखता। एक लंबी लकडी लेकर बिल के अंदर घुसा दिया तो पानी बाहर निकलता है। इस तीर्थ में महिलाएँ भक्ति से स्नान करेंगी तो मोक्ष पाएँगी।
12. युद्धगळ तीर्थ:-
श्री रामचन्द्र ने रावण संहार के बाद ब्रह्महत्या पातक निवारण के लिए इस तीर्थ में स्नान किया था।
13. विरजा नदी:-
यह नदी श्रीनिवास के पाँव के नीचे से बहती है। इस नदी के ऊपरी भाग में श्री वेंकटेश्वर स्वामी का विग्रह खड़ा है। श्री स्वामी के दूसरे प्रांगण के पश्चिम भाग में उग्राण के सामने भूमि के समतल पर पानी पाया जाता है। यह एक छोटे कुएँ की तरह दीख पडता है। इसका जल सिर पर छिडकने से ही मोक्ष प्राप्ति होगी।
14.पद्मसरोवर:-
इस सरोवर में स्नान करने से सभी भोग भाग्य प्राप्ति होगी। और भूत प्रेत पिशाच भी दूर होते हैं। यह पद्मावती के मन्दिर के पास ही है। तिरुपति से यह सरोवर पाँच किलोमीटर दूर पर है। इस सरोवर का पानी सुवर्णमुखी नदी में – जाकर मिलता है।
15. मुख्य तीर्थ:-
काय रसायन तीर्थ, फल्गुणी तीर्थ, कटाह तीर्थ, वराह तीर्थ विश्वक्सेन तीर्थ, पंचायुध तीर्थ, ब्रह्म तीर्थ, सप्तमुनि तीर्थ, देव तीर्थ इस प्रकार के अनेक तीर्थ और है।
तिरुपति क्षेत्र ही कलियुग वैकुंठः-
श्रीमन्नारायण वैकुंठ को छोडकर इस कलियुग में लक्ष्मी पद्मावती के साथ इस क्षेत्र में विराजित है। मानव अपने पाप कर्म और अनारोग्य से बाधाएँ पाकर उससे मुक्त पाने के लिए अपनी अपनी इच्छा के अनुसार दान देने का वादा करके श्रीनिवास के पास पहुँचकर अपने वादे को निभा रहे है। इन भक्तों को सदा भगवान ही रक्षा कर रहे है। हम में बसे हुए ममकार को दूर करने के लिए हम से केश खण्डन लेते है। तुम्हारे मेरे कुछ भी नहीं कहकर हम से सर्वदान लेते है। जाते समय कुछ भी साथ नहीं आएगी कहकर दान वसूल करते है। कदम कदम पर प्रार्थना लेकर हमें रक्षा करते हैं। भक्त जन श्री वेंकटेश्वर स्वामी के दिव्य मंगल रूप को देखकर मोक्ष पाते है। त्रेतायुग में श्री रामचन्द्र और द्वापर युग में श्रीकृष्ण इस कलियुग में श्री वेंकटेश्वर के अवतार लेकर सदा हमारी रक्षा कर रहे है।
सूतमहर्षि ने शौनकादि मुनियों को श्री वेंकटेश्वर स्वामी (बालाजी) के जीवन चरित्र और विशेष कर उनकी महिमाओं को कह सुनाया। इस कहानी को कहनेवालों को और सुननेवालों को श्री बालाजी – क्षेत्र दर्शन करने का फल मिलेगा। जो क्षेत्र दर्शन करेंगे उनको इहपर सुख प्राप्त होगा।
“बिना वेंकटेशं न नाथो न नाथः।
सदा वेंकटेशं स्मरामि स्मरामि।।’
ओं शांतिः शांतिः शांतिः