खखोडर में बैठे हुए श्रीहरि को गाय अपना दूध छिलक देना।
तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास –
पशुपालक रोज की तरह गायों को घास चराने वेंकटाचलम को ले गया। लेकिन इस नई गाय के ऊपर एक नजर डालकर देखने लगा। रोज की तरह गाय श्रीहरि को दूध देने के लिए खखोडर के पास पहुँच गई और अपने थन से दूध श्रीहरि को देने लगी। इस आश्चर्य घटना को पशूपालक ने एक पौधे के पीछे से देखा और क्रोधित होकर अपने हाथ की कुल्हाडी को उठाकर गाय को मारने दौड़ा। श्रीहरि पहले ही यह जान चुका था। गाय को बचाने के लिए खखोडर से बाहर आने को उठा। उसी समय पशुपालक की कुल्हाडी श्रीहरि के सिर पर लग गई। सिर पर लगते ही श्रीहरि के सिर से खून बहने लगा। इस घटना को देखते ही पशुपालक बेहोश होकर गिर पड़ा। खून गाय के ऊपर भी लग गया। मार खाकर श्रीहरि खखोडर से ऊपर आ नहीं सका। वही खखोडर में बैठ गया। गाय इस परिणाम को देखकर वहाँ से लौटकर दौडते दौडते चोलराजा के सामने आकर खडी हो गई। राजा खून से तरी गाय को देखकर चकित हो गया। गाय ने राजा को अपने साथ आने का इशारा किया। राजा गाय का इशारा समझकर गाय के साथ वेंकटाचलम पहुँचकर वहाँ बेहोश गिरे हुए पशुपालक को देखा। खखोडर में बाधा से कराहने की आवाज सुनाई पड़ने लगा। उस आवाज को सुनकर राजा ने अपने रक्षक भटो को चारों ओर डूंढने भेजा। राजा खुद आवाज के अनुसार खखोडर के पास पहुँचा और खखोडर के नीचे देखा कि श्रीहरि घायल होकर कराह रहा था।
चोल राजा को श्रीहरि शाप देना-
राजाने श्रीहरि को देखकर कहा – “हे महापुरुष!, आप कौन है? आप को यह हालत कैसे हुई? अनजाने किए गये कसूर को माफ कीजिए।” राजा की यह बात सुनकर श्रीहरि आँख उठाकर राजा को देखा और कहा – रे मूर्ख, मै कौन हूँ? मुझे देखना चाहते हो तो देखो कहकर श्रीहरि ने अपना असली रूप दिखाया। राजा श्रीहरि का रूप देखकर भय कम्पित होकर श्रीहरि के चरणों पर गिर पड़ा। प्रार्थना करने लगा – हे प्रभु! मुझे क्षमा कीजिए। राजा के ये वचन सुनकर श्रीहरि ने नाराज होकर कहा कि तुम पिशाच हो जाओ।” श्रीहरि ने राजा को यह शाप दिया। राजा ने बहुत दुःखी होकर श्रीहरि से प्रार्थना करते हुए कहा – स्वामी, मैं निरपराध हूँ। मुझे यह सब मालूम हो नहीं। मै ने अपने नौकरों से कोई आज्ञा न दी। यह मेरा पाप नहीं, मुझे क्षमा कीजिए । राजा की यह बात सुनकर श्रीहरि राजा से कहा – “हे राजा!, नौकरों का गुनाह राजा का गुनाह है। इसलिए तुम अपने नौकर के अपराध से अपराधी बन चुके हो। इसका फल तुम्ही को भोगना चाहिए।”
चोलराजा को श्रीहरि से मिला शाप