तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास –
बाकी कथाओं के माध्यम से अभी तक आपने जाना नारद महामुनि सत्यलोक में जा कर ब्रह्मदेव के दर्शन करते हैं और मुनिवरों से नारद अपने मन का संशय प्रकट करना ब्रह्मा और शंकर को श्रापित करना श्रीहरि के वक्षःस्थल पर लात मारना लक्ष्मीदेवी को खोजते हुए भूलोक में प्रविष्ट होना अब आगे ।
खखोडर में बैठे हुए श्रीहरि
महालक्ष्मी और श्रीमन्नारायण वैकुण्ठ को छोडने के बाद वैकुण्ठ कलाहीन हो गया। यह बात नारद महामुनि को पहुँच गयी। नारद महामुनिने ब्रह्मलोक पहुँचकर ब्रह्मदेव से कहा – हे जनक! आप की आज्ञा के अनुसार श्रीहरि को भूलोक में अवतार लेने का उपाय रचा गया। इससे श्रीहरि और लक्ष्मीदेवी के बीच में कलह हो गया। लक्ष्मीदेवी श्रीहरि से रूठकर वैकुण्ठ से चली गई और कोल्हापुरम् में तपस्या में बैठ गयी। लक्ष्मीदेवी को ढूंढते ढूँढते श्रीहरि भी वैकुण्ठ छोडकर भूलोक पहुँच गया। लक्ष्मी की तलाश में आहार निद्रा को छोडकर आखिर लक्ष्मी का पता न मिलने पर तिरुमला में साँप की खखोडर में श्रीलक्ष्मी का ध्यान करते हुए श्रीहरि बैठ गया। कोई उपाय सोचकर श्रीहरि को आहार पहुँचाना चाहिए। नारद की बात सुनकर ब्रह्मदेव, नारद को लक्ष्मी के पास भेजकर खुद महेश्वर से मिलने कैलास में पहुँचा। ब्रह्मदेव का आगमन देखकर शंकर ने ब्रह्मदेव का स्वागत किया। ब्रह्मदेव, शंकर से लक्ष्मीदेवी व श्रीहरि के बीच जो घटना हुई उन सब को कह सुनाया। शंकर व ब्रह्मदेव दोनों ने निश्चय कर लिया कि ब्रह्मा गाय का रूप धारण करे और शंकर बछडा बने। हम दोनों मिलकर दूध से श्रीहरि की रक्षा करें। ब्रह्मदेव की इन सलाह को शंकर ने भी मान ली।
नारद लक्ष्मी के पास जाकर श्रीहरि की स्थिति को बताना-
नारदमुनि कोल्हापुरम् पहुँचकर लक्ष्मी देवी के पास गया और लक्ष्मी देवी से विनय पूर्वक नमस्कार करके कहा – “माता! वैकुण्ठवासिनी होकर भी एक सामान्य स्त्री की तरह काषाय-वस्त्र धारण करके एकांत में तपस्या कर रही है। आप के बिना वैकुण्ठ कलाहीन हो गया और श्रीहरि भी आप को खोजते हुए वैकुण्ठ छोडकर भूलोक मे फिर रहा है।” नारद की यह बात सुनकर लक्ष्मी बहुत दुःखित हुई। आखिर नारद ने लक्ष्मी देवी से कहा कि “आप को खोजते खोजते श्रीहरि निराश होकर शेषाद्रि पहाड पर इमली पेड के नीचे एक साँप की खखोडर में” लक्ष्मी – लक्ष्मी कहकर उसी के ध्यान में अन्न-आहार छोडकर तपस्या करने लगा है। इसलिए श्रीहरि को बचाने के लिए ब्रह्मा और महेश्वरों से मिलकर श्रीहरि को आहार पहुँचाने का उपाय सोचिए” यों कहकर नारद लक्ष्मी जी से बिदा लेकर चला गया।
ब्रह्मा, महेश्वर गाय और बछडे का रूप धारण करना-
लक्ष्मीदेवी अपने पति की स्थिति को सुनकर बेचैन हो गई और श्रीहरि को निराहार से बचाने के लिए ब्रह्मा और महेश्वर का ध्यान किया। लक्ष्मीदेवी की प्रार्थना सुनकर ब्रह्मा और महेश्वर लक्ष्मी सामने प्रत्यक्ष हुए। लक्ष्मीने ब्रह्मा और शंकर दोनों को प्रणाम किया और अपने पति को इस संकट से बचाने की प्रार्थना की। शिव और ब्रह्मा आपस में सोचकर लक्ष्मी देवी से इस प्रकार कहा कि “हे लक्ष्मी! ब्रह्मदेव गाय का रूप और मै बछडे का रूप धारण करेंगे। तुम तो गोपिका का रूप लेकर गाय और बछडे को चंद्रगिरि के राजा चोल राजा को बेच दो। हम खखोडर में बैठे हुए श्रीहरि को गाय का क्षीर देकर उसको बचाएंगे।” ब्रह्मा और शिव की यह बात सुनकर लक्ष्मी संतुष्ट हुई और वैसा करने तैयार हुई।
लक्ष्मी देवी का गाय बछडे को चोलराजा के पास बिक्री करना-
ब्रह्मदेव गाय का रूप और महेश्वर बछडे का रूप धारण किया। लक्ष्मी देवी गोपिका बनी और गाय बछडे को लेकर चोल राज्य में प्रविष्ट हुई। चोल राज्य में घूमते घूमते गोपिका राजा के दरबार में गाय और बछडा लेकर
पहुँची और चोल राजा से कहा – महाराज, यह गाय और बछडा उत्तम जाति के है। इनको सामान्य मानव पाल नहीं सकता। इसलिए में आप को बेचने आरी हूँ। चोलराजा और उसकी पत्नी गाय और बछडे को देखकर बहुत खुश हुए और गोपिका को मुँह माँगा दाम देकर गाय और बछडे को खरीद लिया।
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