अभी तक आपने पढ़ा नारद महामुनि सत्यलोक में जा कर ब्रह्मदेव के दर्शन करते हैं।
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तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास
मुनिवरों से नारद अपने मन का संशय प्रकट करना –
नारद महर्षि हरिनाम स्मरण करते करते भूलोक में गंगा नदी के किनारे आ पहुँचे। गंगा नदी के किनारे कश्यप, महामुनि इत्यादि लोग लोक – कल्याण के लिए महायज्ञ कर रहे थे । नारद महर्षि वहाँ पहुँचकर मुनिवरों से हो रहे महायज्ञ को देख कर संतुष्ट हुए ।यज्ञ करने वाले मुनिगणों ने नारद का आगमन देख कर उचित रीति से उनका स्वागत किया। मुनिवरों ने अपने से हो रहे महायज्ञ के बारे में नारद को बताया। नारद सुनकर संतुष्ट हुए और कहा कि हे मुनिवर आप लोग लोक – कल्याण के लिए इस यज्ञ को कर रहे हैं यह ठीक है। मगर इस यज्ञ का फल – भोक्ता कौन है। त्रिदेव में से कौन इस यज्ञ का फल देगा। बताइए! मुनियों के मुँह से इसका जवाब नहीं मिला तो नारद ने कहाँ – बिना सोच – विचार से करता हुआ यज्ञ निष्फल होगा। पहले आप लोग निश्चय कीजिए कि त्रिमूर्तियो में किसमें सत्वगुण और शांति स्वभाव है। वही यज्ञ का फल दे सकता है। नारद की ये बातें सुनकर मुनिवर शांत हुए और आपस में सोचने लगे कि त्रिमूर्तियो में सत्वगुणवाला कौन है। आखिर कुछ लोग ब्रह्म देव के पक्ष में और कुछ लोग विष्णु देव के पक्ष में बाकी लोग महेश्वर के पक्ष में हो गए। इसलिए एक निश्चय पर न आ सके। बाद में आपस में इसी बात पर झगड़ा आरम्भ हुआ। मुनिगण यज्ञ छोड़कर आपस में लडने लगें। यज्ञस्थल युद्धक्षेत्र बन गया। मन्त्रों के उच्चारण के बदले दूषण-भाषण की वर्षा होने लगी। यह देखकर नारद ने मुनियों से कहाँ कि हे मुनिवर आप लोग आपस में लडना अच्छा नहीं है। आप लोगों को पहले यह जानना चाहिए कि त्रिमूर्तियो में सत्वगुण किसमें अधिक मात्रा में है। सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण, नामक इन तीन – गुणों में सत्वगुण प्रधान है। अब सोचिए त्रिमूर्तियों में इन गुणों की परीक्षा लेने वाला कौन है। नारद की इस सलाह को सुनकर कोई भी आगे नहीं आ सका और किसी में भी त्रिमूर्तियों की परीक्षा लेने की ताकत नहीं थी। आखिर नारद ने बताया आप लोगों में से श्रेष्ठ तपोधन भृगु महर्षि है। भृगु महर्षि ही यह परीक्षा कर सकते हैं। नारद की इस सूचना से सब लोग आनन्दित हुए और भृगु महर्षि को त्रिमूर्तियों की परीक्षा लेने का अधिकार दिया। भृगु महर्षि भी नारद की इसने सूचना को मान लिया और त्रिमूर्तियों की परीक्षा लेने निकला। नारद सूचना को मान लिया और त्रिमूर्तियों की परीक्षा लेने निकला। नारद मन ही मन सन्तुष्ट हुए कि भृगु का घमंड अब निकल जाएगा।
इस लेख में बस इतना ही आगे पढ़ने के लिए ( भाग 3 ) में। लेख पसंद आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर करना ना भूले धन्यवाद।