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श्री वेंकटेश्वर तिरुपति बालाजी की जीवन कथा और उनकी महिमा के बारे मे विस्तार से जानते हैंतिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहासश्री वेंकटेशाय नमः1 सूतमहर्षि ने शौनकादि महामुनियों को श्री वेंकटेश्वर (बालाजी) के जीवन चरित्र और उनकी लीलाएँ विस्तार से बताइए ।नारद महामुनि सत्यलोक में जा कर ब्रह्मदेव के दर्शन करते हैं।ब्रह्मदेव को देखकर नारद ने कहाँ- ब्रह्मदेव नारद का उद्देश जान कर कहा – श्रीवेंकटेश्वर बालाजी के 15 प्राचीन मुख्य तीर्थ।
Tirupati Balaji -तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास
श्री वेंकटेश्वर तिरुपति बालाजी की जीवन कथा और उनकी महिमा के बारे मे विस्तार से जानते हैं
तिरुपति बालाजी मंदिर का संपूर्ण इतिहास
भारत के सबसे चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिरों में से एक है श्री वेंकटेश्वर तिरुपति बालाजी तिरुमला की पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद लेने के लिए लाखों भक्त आते हैं। मान्यता है कि भगवान श्री वेंकटेश्वर बालाजी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान के सामने प्रार्थना करते हैं, श्री वेंकटेश्वर बालाजी उनकी सभी मनोकामना पूरी करते हैं।
श्री वेंकटेशाय नमः
1 सूतमहर्षि ने शौनकादि महामुनियों को श्री वेंकटेश्वर (बालाजी) के जीवन चरित्र और उनकी लीलाएँ विस्तार से बताइए ।
पवित्र भरतखंड में नैमिश नामक अरण्य प्रांत महा पुण्यस्थल है। वहीं देवर्षि महर्षि तथा महामुनिगण तपस्या कर रहे थे। श्री वेदव्यास महर्षि से रचना की गई 18 पुराणो को सूतमहर्षि ने शौनकादि महामुनियों को सुनाया था। शौनकादि महामुनियों ने सूतमहर्षि से प्रार्थना की थी। हे महर्षि कलियुग प्रत्यक्ष दैवम् श्री वेंकटेश्वर बालाजी का चरित्र और उनकी लीलाएँ बताइए। सूतमहर्षि ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करके श्री वेंकटेश्वर बालाजी का लीलाएँ इस प्रकार सुनाते हैं ।
हे मुनिवर कलयुग में पृथ्वी पर जन्म पा गये सर्व मानव कोटि जीवराशियों को पाप कर्मों से विमुक्त देने के लिए श्री महाविष्णु ने वेंकटेश्वर स्वामी बालाजी के नाम से वेंकटाचल पर अवतरित हुए हैं उनकी महिमा अपार है भक्तजनों को सदा आदर करके उनको मोक्ष प्रदान कर रहे हैं जो उनके दर्शन करेंगे या उनकी जीवन कथा सुनेंगे या पढ़ेंगे उनका जन्म परम पवित्र हो जायेगा । ऐसा कहकर सूत महर्षि ने मन में अपने गुरुदेव व्यास महर्षि का ध्यान किया । गुरु के अनुग्रह से श्री वेंकटेश्वर की महिमा और लीलाएँ उनकी आंखों के सामने प्रस्तुत दीख पडीं और उनके अनुसार सूत महामुनि शौनकादि महामुनियों से यह इस प्रकार कहने लगे।
नारद महामुनि सत्यलोक में जा कर ब्रह्मदेव के दर्शन करते हैं।
नारदमहर्प्रि ब्रह्मदेव के पुत्र हैं। सदा हरीनाम स्मरण करते गाते चौदह भुवनों में घूमते – फिरते रहना उनका स्वभाव है। वैसे ही घूमते – फिरते हुए देवताओं में आपस में झगड़े की सृष्टि करके उनको झगडते हुए देखकर आनन्दित होना उनका काम है और दृष्ट – शिक्षण शिष्ट – रक्षण के लिए और मानव कल्याण के लिए श्री नारायण को उस समय पर अवतार करने का प्रोत्साहन करता रहता है। हरीनाम स्मरण गाते गाते तीनों लोकों में घूमता हुआ नारद ब्रह्मलोक में पहुंचा। उस समय ब्रह्म पद्मासन पर बैठे हुए थे। उनके पास ही सरस्वती देवी मधुर स्वर में वीणावादन करती हुई बैठी थी। नारद ने वहाँ पहुँच कर ब्रह्मदेव को प्रणाम किया। ब्रह्मदेव ने आशीर्वाद देकर नारद को उचित आसन पर बैठने की अनुमति दी । उस समय ब्रह्मदेव के दर्शन के लिए इन्द्रादि देवता, सूर्य चंद्र नवग्रह देवता वहाँ आकर बैठे हुए थे । त्रिलोक संचारी नारद को वहाँ देखकर सभी देवता त्रिलोक के समाचार नारद से सुनने के उत्साह में थे।
ब्रह्मदेव को देखकर नारद ने कहाँ-
हे पितृदेव द्वापरयुग के कृष्णा अवतार के बाद श्रीहरि ने इस कलियुग में कोई अवतार धारण नहीं किया है। इसी वजह से कलियुग के मानव ज्ञानहीन होकर भक्ति अद्धाओं को छोड़कर पुण्यहीन होकर नरककूप में जा रहे हैं। इनको बचाने का कोई उपाय बताइए।
ब्रह्मदेव नारद का उद्देश जान कर कहा –
हे पुत्र तुम तो त्रिलोक संचारी हो जहां जो कुछ होता है । वहां उसका प्रतीकार करना भी तुम जानते हो। तुम संकल्प मात्र से कई महान कार्य कर चुके हो। तुम ही ऐसा कोई उपाय सोचो जिससे मानव – कल्याण के लिए श्रीहरि का अवतार हो। इससे तुम्हारी कीर्ति बढ जाएगी और कलियुग का भी उद्धार होगा। नारद ने ब्रह्मदेव की बातें सुनीं और भविष्यकार्य को मान में सोचते हुए ब्रह्मदेव से बिदा लेकर वहां से रवाना हुए। नारद के इस महान कार्य को देखकर इन्द्रादि देवता बहुत संतुष्ट हुए।
मित्रों इस पोस्ट में बस इतना ही आगे पढ़ने के लिए भाग 2 में पढ़ें धन्यवाद।
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